नए इंडिया का, क्रिया-कलाप देख लो।
ढंग बदले हैं, जीने की राह देख लो॥
कद्र करते रहे हैं, बड़ों को सदा से।
ये रीति चली आ, रही सर्वदा से॥
उम्र में जो बड़े, उनका सम्मान होता।
उनकी आज्ञा जो होती, दिल से पालन था होता॥
रस्म अब की नहीं, होती आई युगों से।
सीखते आए सुन हम, सब अपने बड़ों से॥
छोटे देते आदर, बड़े देते प्यार।
गुरुजन का अनुभव, पाया संसार॥
नए इंडिया का बदला, व्यवहार देख लो।
ढंग बदले हैं, जीने की राह देख लो॥
हम जग में रहे हैं, सदा सबसे न्यारे।
हैं लगे भूलने अपनी, संस्कृति सारे।
चढ़ा सब के नज़र पर, है चश्मा ब्रितानी।
देखते-बोलते हैं अब, वाणी ब्रितानी॥
तंग कपड़े पहन, अर्ध नंगा बदन।
हैं न फूले समाते, दिखला अपना तन॥
नकल पश्चिम का करने में, मशगूल रहते।
करें कर्म वे जो, वही हम हैं करते॥
आजादी मिली, पर, हुये न आजाद।
नकल कर, गुलामी को, रखा आबाद॥
पश्चिम के नकल का, प्रभाव देख लो।
ढंग बदले हैं, जीने की राह देख लो॥
नहीं आज होती, है हिन्दी का कद्र।
ब्रितानी जो बोले, समझे जाते वही भद्र॥
बोलने में इंगलिश, हैं रुतबा समझते।
जो हिन्दी अपनाते, पिछड़े समझे जाते॥
कहावत पुरानी, पर, आज भी ये सच है।
देशी है मुर्गी, पर बोल विलायती है॥
नहीं जानते, रहेगा और, कब तक ये रोग।
गुलामी की भाषा, कब त्यागेंगे लोग॥
पश्चिम के नकल का, प्रभाव देख लो।
ढंग बदले हैं, जीने की राह देख लो॥
हिन्दी है राष्ट्र भाषा, इतनी सरल है।
जन-जन को जोड़ने की, ताकत प्रबल है॥
हिन्दी में शब्दों का, सागर अपार है।
भाषा सुवासित ये, जैसे कचनार है॥
भाषा है आईना, समाज की पहचान है।
जन-जन का प्यार, इसमें बसा संस्कार है॥
अनोखी ये संस्कृति, जग में निराला है।
माँ भारती के गले शोभित, सुंदर एक माला है॥
भूल जाओ कुछ भी, न भूलो अपनी संस्कृति।
सारे जग में श्रेष्ठ, है मुनियों की ये कृति॥
बहुत भटके, अब लौटो, अपनी शान देख लो।
भूल गए जो गलियाँ, फिर वो राह देख लो॥