नारी पर होता अत्याचार

मर्द रहा खुदगर्ज़ सदा से, ना समझा, होता क्या प्यार।

नारी पर करता आया नर, युगों-युगों से अत्याचार॥

दिया जन्म मर्दों को नारी,

पाल-पोष कर किया बड़ा।

स्तन का पय पान करा कर,

नन्हें बालक से किया बड़ा॥

स्वयं सहन कर कष्ट बहुत,

बालक को मर्द बनायी है।

जाड़ा, गर्मी, वर्षा, पानी,

खुद सह कर तुम्हें बचायी है॥

कभी स्वयं रह कर भूखी,

तुमको भर पेट खिलायी है।

सारी सारी रात जाग खुद,

लोरी गा तुझे सुलायी है॥

क्या सिला दिया तुमने उसका,

दिखलाया कैसी कृतघ्नता।

गोद में जिसके खेला तुमने,

प्यार उसी का भुला दिया॥

सहती गई, ममता की मूरत, किया नहीं फिर भी तकरार।

नारी पर करता आया नर, युगों-युगों से अत्याचार॥

आये-गये युग द्वापर-त्रेता,

युग सदा बदलता आया है।

सम्मान उचित नारी को फिर भी,

कभी नहीं मिल पाया है॥

ग्रन्थों के पन्नों पर उनका,

गुणगान लिखा तो जाता है।

व्यवहारिक जीवन में वैसा,

सम्मान कहाँ मिल पाता है॥

शक्ति रूप, कहा नारी को,

यह धर्म-ग्रंथ की वाणी है।

कितने, पर सितम किए नर उन पर,

घर-घर की यही कहानी है॥

पति ही है परमेश्वर उनका, करे चाहे जैसा व्यवहार।

नारी पर करता आया नर, युगों-युगों से अत्याचार॥

है नारी, केवल एक नारी,

धर्म-जाति का फर्क न होता।

मर्दों की इस दुनिया में,

नारी को अबला समझा जाता॥

नारी अबला नहीं, सबला हो,

ये नर को जरा न भाता है।

परिजन हो या अन्य कोई नर,

इससे बच नहीं पाता है॥

अबला नहीं है, जग में नारी, सुनने को नर होगा तैयार।

रुक जाएगा तत्क्षण ही, नारी पर होता अत्याचार॥