माँ, ममता की तू मूरत

माँ ममता की तू मूरत, या ली देवी की सूरत है।

सच तेरा स्थान ओ माता, सब देवियों, से ऊपर है॥

जन्म दिया तूने माँ मुझको, प्रसव वेदना सह कर।

रहा गर्भ में तेरी माता, रुधिर तुम्हारा पी कर॥

बड़ी मशक्कत की माँ तूने, तब जाकर मैं खड़ा हुआ।

सही अनेकों कष्ट स्वयं माँ, तब जा कर मैं बड़ा हुआ॥

नहीं यातना कोई ऐसी, माँ तुम जिसे न झेल सको।

आन पड़ी कोई विपदा सुत पर, माँ, उनसे न खेल सको॥

तुम करुणा की सागर हो माँ, जिसका कोई थाह नहीं।

ममता चाहे प्राण ही ले ले, तुमको किंचित परवाह नहीं॥

किसने देखा उस देवी को, रहती है मंदिर में जो।

पृथक क्या होगी सूरत उसकी, निश्चित होगी तेरे जैसी वो॥

तुम तो देवी-रूप हो माता, तुमसे अलग वो क्या होगी।

कौशल्या या बनी यशोदा, या माता मरियम होगी॥

तेरी पूजा से नहीं श्रेष्ठ, है अन्य और कोई पूजा।

साक्षात तुम ही देवी दुर्गा हो, अन्य नहीं कोई दूजा॥

तेरे चरणों में आकर माँ, मुझे खुशी अलौकिक मिलती है।

तेरी ममता, स्नेह व आशीष से, मुझे गजब की शक्ति मिलती है॥

कहते हैं, सब देव तड़पते, इस धरती पर आने को।

बन कर पुत्र किसी माता का, मातृत्व भरा सुख पाने को॥

तेरी सेवा से अधिक सुफल, क्या होगा कोई तीरथ का।

तेरी छाँव ही मेरा तीरथ माँ, आलम्ब है मेरे जीवन का॥

सिर सदा झुके तेरी चरणों में, देना तू आशीष मुझे।

बस यही निवेदन मेरा माँ, मत करना कभी निराश मुझे॥

माँ मैं तेरा बालक हूँ, बालक ही सदा रहूँगा।

वृद्ध अगर भी हो जाऊँ, तेरा बच्चा बना रहूँगा॥

चूक कहीं हो जाये माता, क्षमा मुझे करती रहना।

पथभ्रष्ठ कभी न हो पाऊँ, आशीष सदा देती रहना॥

फूलों की बगिया

टहलता – टहलता, कहाँ आ गया।

कैसी फूलों की बगिया में मैं आ गया॥

रंगीन फूलों की बगिया ये प्यारी।

रंगों के मेले हैं, खुशबू है न्यारी॥

करते गुंजन मधुप, गीत गाते भ्रमर।

नन्हें खग भी फुदकते है, चारों प्रहर॥

पंखुड़ी, फूल काले, विविध रंग में।

बन के दुल्हन, महावर लगा अंग में॥

मानों आयी मिलन को, वो उद्यान में।

अपने साजन मिलन को, बसा ध्यान में॥

जिधर देखिये, प्रेम-मनुहार है।

सारी बगिया में, जैसे भरा प्यार है॥

प्यार ही फूल का, रूप धारण किया।

प्यार बन के भ्रमर, मंत्रोच्चारण किया॥

तान कोयल भी, कुछ यूं लगाने लगा।

चुप सा बैठा पपीहा, भी गाने लगा॥

स्वर की लहरी में डूबा, यों उद्यान था।

मुग्ध थे सब, न अपना, उन्हें ध्यान था॥

दिल को एहसास होता, कहाँ आ गया।

ऐसी वादी-ए-कश्मीर में, मैं कब आ गया॥

मैं तो उड़ता सदा, कल्पना में रहा।

कल्पना की नज़र से, निरखता रहा॥

कभी उड़कर, मैं छूता, उस ऊंचाई को।

देख पाता कभी, मैं उस गहराई को॥

ये जग है एक बगिया, मैं छोटा सा तिनका।

तुच्छ इतना हूँ कि, कोई गिनती न जिसका॥

‘तेरी’ बगिया बड़ी है, सुहानी भी है।

फूल इसमें है अद्भुत, नूरानी भी है॥

हम सब ‘तेरी’ इस बगिया, के ही फूल हैं।

तुमने जैसा रचा, उसमें मशगूल हैं॥

‘तुम’ जो चाहो, मुझे भेजो, कहाँ, क्या बना।

हार ‘तेरे’ गले, या शव का माला बना॥

मैं तो करता हूँ खुद को, हवाले तेरे।

तेरी मर्ज़ी, जो चाहो, बना दो मुझे॥

दिल से स्वागत करूंगा, दोगे भी तुम सज़ा।

तेरी जो भी हो मर्ज़ी, मिलेगा मज़ा॥

कमाल देख लो

दुनिया का कैसा है, हाल देख लो।

यहाँ होता है कैसा, कमाल देख लो॥

अब किसी पर भरोसा, न रहा किसी का।

बात सारी दुनिया की, न खास किसी का॥

मित्रता को कलंकित, किया कुछ ने ऐसा।

सादे वसन पर, लगा दाग जैसा॥

वसन पर जो लगे दाग, धुल भी वो जाये।

गर, दोस्ती पर लगे दाग, धुल कैसे पाये॥

बहुत कम हैं ऐसे, जो दोस्ती निभाते हैं।

बुरे वक़्त भी उनके, काम बहुत आते हैं॥

जरूरत पड़े, गर तो, दे सकते प्राण हैं।

दोस्ती पर खुद को, कर सकते कुर्बान हैं॥

कर गुजरने को, ये हैं, बेहाल देख लो।

यहाँ होता है कैसा, कमाल देख लो॥

लोग ऐसे अधिक, जो नहीं मानते हैं।

दोस्ती क्या है होती, नहीं जानते हैं॥

इनकी नज़रों में होती, है दौलत बस प्यारी।

तौलते हैं, दौलत से, दुनिया ये सारी॥

लोग करते नहीं आज, वैसों से यारी।

जिनको दौलत से भी ज्यादा, इज्जत हो प्यारी॥

तौलते हैं लोग आज, दौलत से इज्जत।

पर, क्या मिल सके है, बाज़ारों में इज्जत॥

यहाँ दौलत का होता, धमाल देख लो।

यहाँ होता है कैसा, कमाल देख लो॥

सुना तुमने होगा, कन्हैया की यारी।

सुदामा और कान्हा की, दोस्ती थी न्यारी॥

दिलोजान से प्यार, करते थे दोनों।

पूरी श्रद्धा व दोस्ती, निभाते थे दोनों॥

कहाँ छोटा-बड़ा कोई, दोस्ती में होता।

दोस्ती में क्या राजा, क्या प्रजा कोई होता॥

बस मिलन दो दिलों का, बेमलाल, देख लो।

यहाँ होता है कैसा, कमाल देख लो॥