तितली। ( पटनादूरदर्शन से प्रसारित)11.07.2016.

वन-उपवन में फूलों पर, उड़ती-फिरती, है डोल रही।

रंग-बिरंगे फूलों को, अपने रंगों से तौल रही॥

किसी फूल पर कभी बैठती, उड़, किसी अन्य पर जाती है।

खेल परागन पुष्पों का, इठलाती निपटाती है॥

उड़ने वाली यह सुंदर सी जान, इसे क्या कहते हैं?

बड़े प्यार से लोग इसे सब, तितली रानी कहते हैं॥

तितली रंग-बिरंगी प्यारी, कुदरत ने क्या खूब बनाई।

फूल भी सुंदर, रंग-बिरंगा, खुशबू भी क्या खूब सुहाई।।

प्रेम अटूट अनोखा होता, इन तितली और फूलों का।

रस देते-लेते रहते हैं, पूरक हैं एक दूजे का॥

जान छिड़कते एक दूजे पर, सदा प्यार में बंधे रहते।

गंध-रंग की मदमस्ती में, मस्त हुये से दोनों दिखते॥

जहाँ फूल, तितली आएगी, अपनी प्यास बुझाने को।

आलिंगन फूलों से कर के, दिल की कसक मिटाने को॥

खेल यही चलता रहता है, चक्र चला करता जीवन का।

बैठ मदारी, कहीं दूर से, खेल कराता है जीवन का॥

मनमोहक हैं फूल अगर तो, तितली में कुछ कमी नहीं।

माना, फूलों में खुशबू है, पर, उड़ सकता वो कभी नहीं॥

नहीं प्रेम में तौला जाता, हल्का कौन है, भारी कौन।

प्रेम रखे सबको समान, हल्का-भारी की बातें गौण॥

प्यार निपट अंधा होता है, नहीं उसे कुछ है दिखता।

दिल की लगी अनोखी होती, काम अनोखा यह करता॥