कर दो दूर अंधेर

भोला चला प्रखण्ड में,

भरने जमीन का टैक्स।

जमींदार नया, बैठा सरकारी,

बैठ, जमाये धौंस॥

जमावत सिर्फ न धौंस,

अपितु, रोज-रोज दौड़ावत।

बंशी मुख में डाल के,

मछली-सा हमें फंसावत॥

छोटे-बड़े अनेको बंशी,

जगह-जगह लटकावत।

जिसकी बंशी हो जैसी,

मछली वैसी फंस जावत॥

जो मछली छट-पट करत,

देह-पूंछ फड़कावत।

उस मछली के फ़ाइल से,

पेपर गायब हो जावत॥

मिलिभगत सब लोगन का,

साहब, बाबू, प्यून।

ऊपर से नीचे एक हैं,

सुने शिकायत कौन॥

बीडीओ साहब, सीओ साहब,

प्यून हो, या फिर किरानी साहब।

मत कर्मचारी को भी हल्के लो,

सब बाबु के खास ये साहब॥

अमीन साहब तो और हैं बड़े,

करते सदा दलाली साहब।

भोले किसान का फंसना है तय,

बोलो कौन, बचावत साहब॥

गाँव-गाँव, टोलों-टोलों में,

दलाल अनेको बसे हैं साहब।

अपना होने का ढोंग रचा,

लोगों को मूर्ख बनाते साहब॥

मत पड़ इनके चक्कर में,

हो जाओ, अब होशियार।

आपस में मिल एक साथ,

इन सब को कह दो, खबरदार॥

अब घोडा व घास का किस्सा,

ज्यादा नहीं चलाओ।

शोषण करने वालों से,

अब आकर, भिड़ जाओ॥

खूब नचाता आया तुमको,

अब तुम भी इसे नचाओ।

रिश्वतखोरों के हाथों में,

हथकड़ियाँ डलवाओ॥

बहुत जरूरी है करना यह,

मत कर अब, तनिक भी देर,

सजा कुकर्मियों को दिलवाकर,

फौरन कर दो दूर अंधेर॥

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s