रची जो चीज प्रकृति ने, रची हर चीज प्यारी है।
जना सब कुछ उन्होंने ही,अतः सबकुछ ही न्यारी है।।
रचयिता ने रचा सबकुछ , उन्ही की सारी कृति है।
बुराई गर दिखे उसमें,तो वह अपनी ही विकृति है।।
उनकी रची रचना, सब के सब ही प्यारी है ।
फिर भी न मन भाये ,दोष समझे हमारी है।।
कहां क्या क्या बनाना है , सबकुछ पता उनको ।
जरूरत क्या किसे कितनी , यह भी पता उनको।।
पौधों की अनेकों किस्म ,भरे उनके वनों में है ।
भरे अनमोल गुण उनमें, पता कुछ विद्वजनों में है।।
जो गुण जानते उनके, उन्हें अनमोल लगते हैं ।
नहीं जिनको पता होता , महज जंजाल लगते हैं।।
ध्यान दे गर सोंचिये , उनके किये निर्माण को ।
विचित्रता हर में दिखेगी,केन्द्रित करें गर ध्यान को।।
चक्र कुछ ऐसा बनाया, हर जरूरी चीज का ।
न संतुलन बिगड़े कभी भी, ध्यान दें उस चीज का।।
चक्र जल का ,वायु का ,हर चीज का उसने बनयी।
उस गंभीरता को सोंचिये,क्या-क्या नहीं उसने बनाई।।
विषय बहुत गंभीर है,आसां नही सब जान पाना ।
प्रयास मानव कर रहा ,पर है बहुत अभी दूर जाना।।
जो नित्य आंखों देखती, फिरभी कहां हम समझ पाते।
कैसे बनी ओर क्यो बनीं, इस बात से अनभिज्ञ रहते।।
संसार का कोई आदमी,अबतक इसे समझा कहा है?
जो कुछभी समझा बहुतथोड़ा,अंतको समझा कहांहै?