नीर ,नयन या बदली का

सच्चिदानन्द सिन्हा

नीर भरी बदली और तेरी ,नयनों में क्या फर्क रहा।

दोनों ही जल बरसा देती, जब भी उनका जी चाहा।।

तुम दोनों जीवनदाता हो, बिन दोनों जीवन कैसा।

नहीं रहे दोनों में कोई, कमी खलेगी तब कैसा।।

नीर ,नयन बिन जीवन का, क्या संभव है बचना ।

नयन बिना जीवन दुष्कर,पर जल बिन बचेगा कितना।।

जल बरसाते हैं दोनों ही, पर भेद अलग दर्शाता है।

बरस मेघ खुद जीवन देता,आंसू ग़म बतलाता है।।

काम अहम दोनों का रहता, जीवन दोनों से चलता है।

कमी किसी का गर हो जाये, जीवन दूभर हो जाता है।।

दोनों ही नीर हुआ करते, पर कर्म अलग दोनों का।

एक नयन का रक्षक है, एक सकल जीवन का ।।

पर महत्व दोनों का अपना, दोनों ही धर्म निभाते हैं।

निरत रहें दोनों कर्मो में, ‘कर्म ही धर्म’ बताते हैं।।

दोनों हैं वरदान प्रकृति के, जीव-जंतु सबके खातिर।

मुफ्त बाॅटती रहती खुद, सबके जीवनरक्षण खातिर।।

आभारी…

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आज सच्चाई विवश है.

सच्चिदानन्द सिन्हा

ये दुनिया उसी की , जमाना उसी का ।

जिसने शराफत न सीखी, जो हुआ न किसी का।।

नहीं पास तहजीब कोई, न तौर, न तरीका ।

नहीं पास विद्या कोई, न सीखा सलीका ।।

गलत काम सबको ही , मन आज भाये।

गलत जो न करते , वे मूरख कहाये ।।

बेईमानों के हाथों ,सच्चाई बेबस है ।

सिवाये सिसकने के ,चलता न बस है।।

बुरा कर्म करना , उन्हें सिर्फ आता ।

जो बुराई में डूबे , मन इनको भाता ।।

चोरों, बेईमानों का , संगत उन्हें है।

नजरों में उनकी , सज्जन ही बुरे हैं ।।

रखता वो खुद को, नशा में डूबाये ।

कोई ऐसा नशा न, जो बच उससे पाये ।।

डूबते हैं खुद भी, औरों को भी डुबाते।

नये लोग को भी, हैं पथभ्रष्ट बनाते ।।

इनकी संख्या बड़ी है, जमात बड़ी है।

कुपथ पे चलने की ,हिमायत बड़ी है ।।

इनसे बचकर निकलना…

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