कुछ लोग दुनियाॅं में, शायद इसीलिए आते ।
भला सब का करते, बदले कुछ नहीं लेते।।
भलाई करने में सब का, उन्हें आनन्द है मिलता।
पड़ती झेलनी परेशानियाॅं, फिर भी मजा आता।।
सुकून उनके दिल को, इतना अधिक मिलता।
परेशानी समझे सब जहाँ, उन्हें आनंद है मिलता।।
जिन्हें कोई काम करने में, सुखद एहसास मिल जाये।
कठिनतम काम भी उनके लिये, आसान बन जाये ।।
थकान उनके पास तो, आ ही नहीं सकता कभी।
तन जाये थोड़ा थक भले, मन नहीं थकता कभी।।
ऐसे लोग होते चंद ही, ज्यादा नहीं होते ।
बहुधा तो, वर्षों में कभी, अवतार ये लेते।।
वैसे भी तो दुनियाॅं में, सदाचारी हैं कम होते ।
आते हैं सभी निश्छल, विकृत मन यहीं होते।।
मनोविकार ही शत्रु प्रबल, प्रत्येक मानव का।
डुबोये बिन न जल्दी छोड़ता, यह शत्रु है सबका।।
विकार तो कमोबेश सब में, है रहा करता ।
जो बच, अछूता रह गया, है संत…
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बहुत सुन्दर |
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धन्यवाद
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