2015 के पन्नों से पिताजी की एक और रचना पुनः प्रस्तुत है। भगवान गौतम बुद्ध के जीवन-दर्शन की झलक दिखाती ये रचना आशा है, आप सब को पसंद आये।
कपिलवस्तु के राजघराने
में तूने था जनम लिया I
सिद्धार्थ पड़ा था नाम तुम्हारा
तूने कर्म महान किया II
न ठाठ राजसी था तेरा
केवल थे कर्म महान I
सदा लगा था रहता तेरा
सदाचार पर ध्यान II
जीवन में घटना कुछ ऐसी
देखा और गंभीर हुआ I
ध्यान लगा सोचा जो उनपर
आगे चल वही महान हुआ II
घटना यूँ नहीं अजूबा कोई
सदा घटा करता है I
मानव मरता जब, सजा ज़नाज़ा
मरघट तक जाता है II
नज़र पड़ी सिद्धार्थ की उसपर
बुलाया, पूछा, ये क्या है I
चार व्यक्ति मिल ले जाते हो
बता, मामला क्या है II
बात बतायी उसने सारी
अच्छे से समझाया I
मानव मरता, है जाना पड़ता
बातें सारी बतलाया II
आगे देखा, एक भिखारिन
दिन-हीन थी हालत उसकी I
पूछा उसके पास पहुंचकर
जानी सारी बातें उसकी II
मन में घटनाएँ घर कर गयीं
ढेरों प्रश्न उठे मन में I
जाग उठी…
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