प्रकृति भेद नहीं करती.

सूर्यन करता भेद कभी,उनको दिखते सब एक समान।

उनकी नजरों में सभी एक,सबका ही करते कल्याण ।।

देता है प्रकाश सबों को,बिन भेद भाव के एक समान।

बड़े, छोटे हर जीव सभी,उनकी नजरों में एक समान।।

पवन सभी को प्राणवायु दे,जीवन रक्षण है करता ।

दुष्ट और निकृष्टों को भी, नहीं कभी वंचित करता।।

उनकी नजरोंमें भेदनहीं,उनको सब दिखतेएक समान।

दिनरात अहीत जोकरता रहता,उसकभी करतेसम्मान।

नहीं वृक्ष देखा करते, है कौन शत्रु या कौन है मित्र ।

दिन रात काटते जो रहते ,उनका भी ये होते मित्र ।।

दिन रात इसे जो काट रहे, उनको भी छाया,फल देते।

बदले का भाव नहीं मन में, उनका कभी रहा करते ।।

सरिता निर्मल जलदेती सबको,जलक्या जीवन हीदेती।

निकृष्ट प्राणि-मानव उसको भी, प्रदूषित कर ही देती।।

बादल जल बरसाता है,बिन भेद किये जल देता है।

सारे सचर अचर पर अपना,सुधा का रस बरसाता है।।

नहीं भेद करता वह मानव, जो सचमुच मानव होता।

सागर से भी ज्यादा गहरा,उनका मन मस्तिष्क होता।।

परमार्थ सिर्फ मानवकर सकता,कोई नहीं दूसरा प्राणी।

शक्तिनिहित तो ज्यादा कुछमें,पर कहां मनुजसा ज्ञानी।

नहीं भेद करती है प्रकृति, अपने कोई कार्य कलापों में।

जीवन देने से मृत्युतक में,कहाॅं फर्क कोई कामों में ।।

खुराफातजो करता मानव,मानव मस्तिष्ककी देनयही।

प्रदूषित मस्तिष्कको करदेता,करता उल्टा काम यही।।