पारिजात का पुष्प चयन कर, बड़े यतन से ले आया ।
अरमानों से सजा गुलों को, गुलदस्ता तैयार किया।।
किसे करूॅं मैं भेंट प्यार से , इस प्यारे गुलदस्ते को ।
है सर्वश्रेष्ठ हकदार कौन , भेंट करूॅं पहले किनको ।।
आजाद हमें करवा कर गये ,उन सारे पुरोधाओं को ।
जो ताज पहन बैठा दिल्ली में ,उन सारे नेताओं को।।
जो डटे सदा रहते दिन-रात , वर्फीले सरहद के ऊपर ।
हमें चैन की नींद सुलाते , खुद वर्फों में रह रह कर ।।
बिघ्न अनेकों खुद सहकर , हमें मीठी नींद सुलाते हैं।
गोली की बौछारों को , अपने सीने पर सह जाते हैं ।।
या बेठे तख्तपर नेताओं को,जो राज-सुखोको भोगरहे।
या उन गुण्डों बदमाशों को,जो जनताको बरगला रहे।।
या गुलदस्ते को भेंटकरूॅं,उन खोजी वैज्ञानिक को ।
अनवरत लगाता जीवन अपना,उन जैसे वैज्ञानिक को।
ऋषियों,मुनियों कोभेट करूॅं,जीनेंका जोराह दिखाया।
अपना पूरा जीवन जिसने, अध्यात्म में सिर्फ लगाया।।
या भेंट करूॅं कृषकों को,अन्न दिया करता जो सबको।
अपना जीवन तंगी में जीते,परयही पेट भरता सबको।।
इन सबको है देना गुलदस्ता,पर वरिय किसे मैं मानूं?
उलझन में मैं पड़ा हुआ हूॅ, सर्वश्रेष्ठ किसे मैं जानूॅं ??
इस उलझनसे पार करादे,उलझन बहुत जटिल लगता।
कौन रास्ता उत्तम होगा , बतलाते तो अच्छा होता ।।