चितवन-वाण अति घातक.

घायल मतकर और न दिल को, बढ़ा दर्द जाता है।

दर्द सहन करने की क्षमता , अब कमता जाता है।।

पीड़ा और बढ़ेगी ज्यादा, दिल शायद ही सह पाये।

टीस सहन से ज्यादा हो तो,ऐसा न हो ,टूट जाये ।।

विरह वेदना को सह लेना,होता तो आसान नहीं।

पाषाण-हृदय भी कितना रोता,बतलाना आसान नहीं।।

जुबां हिलाने से भी पहले, ऑंखें अश्रुसे भर जाती ।

नयना ,जिह्वाके कहने से,पहलेही सबकुछ कह जाती।

गम खुशी प्रकट दोनों कर देती,नयनें अपनी भाषा में।

छिपती भी नहीं छिपाये इनसे,न बंधती बंधनपाशा में।।

चितवन-वाण बहुत है घातक,यह अचूक है होता।

गंभीर घाव कितना कर देगा, नहीं कोई कह सकता ।।

बचना भी आसान नहीं, संभव ही नहीं असंभव ।

वख्सा न ऋषि-मुनियों तकको,बचना किया असंभव।।

कितने सूरबीर तो इनसे ,नत-मस्तक हो खड़े रहे।

कृपादृष्टि उनकी पाने को, नजरें अपनी बिछा रहे।।

दिलमें यह उम्मीद लिए,कि नजरें कमी घुमेगी ।

कभी इनायत की नज़रें तो, मेरी ओर फिरेगी ।।

उम्मीद जगाती हिम्मत को, पहल तभी यह करती।

हिम्मत के आगे बड़े बड़ों को,भी झचक जानी पड़ती।।

जिनमें हिम्मत की थाह नहीं हो,सबकुछ उनको संभव।

असंभव तो असकों को होता,समर्थों कोकहाॅं असंभव।

ऐसे हिम्मत वाले कम होते, कभी नगण्य होते हैं ।

उनकी कीर्ति सदा चमकती, लुप्त नहीं होते हैं।।

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