गुलशन को सजाने में, बहुत का हाथ होता है।
अकेला कुछ नहीं होता, बहुत का साथ ह़ोता है।।
लाकर पेड़ की गाछी , लगाता ,सींचता कोई ।
जमीं अनुकूल करता, कोड़ दे क्यारी बना कोई।।
सहयोग करते सब , तभी गुलशन निखरता है।
दिखा सौंदर्य अपना, लोग को आकृष्ट करता है।।
दिखा कर नूर अपना, प्यार से सबको बुलाता है।
पवन को सुरभी दे अपनी, लोगों को लुभाता है।।
खिचे आते चले सब जीव, कीड़े भी पतंगे भी ।
मधुप आ गुनगुनाते हैं, तितलियों को लुभाते भी।।
चमन में पक्षियों का झुंड आ, अठखेलियां करते।
प्रणय का खेल खुद करते,निषेचन पुष्प का होते।।
प्रकृति की विधा भी , साथमें चलता ही है रहता।
बसंत का उन्माद जो, उनपर चढ़ा रहता ।।
माली तो बदल जाता , नहीं गुलशन बदलता है।
ऋतु-बसंत तो लौटकर , हर वर्ष आता है ।।
प्रकृति चुप नहीं रहती , समय तो रुक नहीं जाता।
अपनी गति से वह निरंतर ,चलता ही सदा जाता ।।
गुलशन पर नशा मधुमास का,जब पूर्ण छा जाता।
मधुप भी कर मधु रसपान,जब मदमस्त हो जाता।।
गम क्या उसे मधुमास, फिर आये न आये ?
उसे तो फिक्र केवल है, जो आया लौंट न जाये।।
यही सब सोंचकर वह, स्वयं को ऐसा डुबो देता।
नहीं स्तित्व तक का ध्यान अपना,सब भुला देता।।