हालात स्वत: बदल जाते.

देखें राजनीति क्या , आजकल गुल खिलाती है ।

सुनकर राज भीतर का ,घुटन महसूस होती है ।।

ये जो प्रतिनिधि होते , जिन्हें जनता चयन करती।

चयन करके न जाने क्यों उसे, सर पर बिठा लेती।।

सिर पर बिठाना ही , उनकी चूक हो जाती ।

उनकी ही बनाई बिल्ली,उन्हींपर म्याऊॅं करदेती।।

भ्रम का भूत लोगों में, घुंसकर घर बना लेता।

उनके दिल दिमाग को , क्षत- विक्षत किये देता ।।

भ्रम के जाल में दोनों, भटकते ही सदा रहते ।

पतन अपना करा लेते ,जनता को भी पिस देते।।

रूह गणतंत्र का क्या है, समझते ही कहां सब हैं।

वर्ष बीते तो सत्तर साल ,पर समझें न अबतक हैं।।

समझें भी भला कैसे , बताया ही कहाॅं कोई क्या?

फुर्सत समझने की उन्हें, मिल पायी भी है क्या ??

उल्टी बात बतला लोग को, मूरख बना देते।

है जनता आज भी भोली,बस मतलब सधा लेते।।

जनता मूर्ख रह जाये, उन्हें है फायदा इसमें।

उल्टी बात समझाना इन्हें, आसान हो जिसमें।।

गरीबी से पनपकर जो ,नेता बन उभर आते ।

गरीबी चीज क्या होती, बस वे ही समझ पाते।।

जिस दिन देश की जनता, बातें सब समझ जाये।

तभी उस देश की हालत तो,स्वतः सुधर जाये ।।

6 विचार “हालात स्वत: बदल जाते.&rdquo पर;

टिप्पणी करे