माया-जाल में फॅंसते क्यो?

माया-जाल में फॉसते क्यों हो, इनसे पिंड छुड़ाओ ।

उलझे क्यों हो उलझन में,निकलकर बाहर आओ।।

काम,क्रोध,मद,मोह मिला,तैयार हुआ यह जाल बड़ा।

फॅसते जाते ,जो हैं आते, करते खुद ही जंजाल खड़ा।।

सभी जानते,सभी बोलते, यहतो है माया का जाल।

फिरभी सबके सब हैं रहते,फॅसने को खुदही बेहाल।।

सबलोग जानते,खूब समझते,पर खुदहीनहीं सम्हलते।

इन चारों में कोई आकर, राहोंसे उन्हें डिगा देते ।।

संयम जो कर लेते इनपर,होते मानव वे बड़े महान।

हित उनकातो होता अपना,सारे जनको करतेकल्याण।

युगपुरुष वहीहै कहलाते,उनको दिखताजग एक समान

भेदभाव से दूर सदा,लगता जग अपनी ही संतान।।

माना ऐसे दुर्लभ हैं होते,अच्छे दुर्लभ तो होते ही।

खदान कोयले का है होता,हीरा भी नहीं मिलेगें ही।।

अनमोल रत्न होते ही कम,दुर्लभ होते गुणकारी भी।

अति शख्त ,पर पारदर्शक,होते सबके हितकारी भी ।।

कीमत कोई आंक न सकता ,सारे दौलत पर है भाड़ी।

परसुलभ अति सबके खातिर,लगता सबको मनुहारी।।

जीवन को स्वच्छ बनाकर,सीखो जग में तूॅ जीना।

नहीं अकारण भेदबढ़ाओ,मिलजुल कर सीखो रहना।।

समृद्धि और शांति जहां हो,जीवन ऐसा अपनाओ।

मन में मैल नहीं रह पाये,जीवन को स्वच्छ बनाओ।।

स्वर्ग यहीं है , यहीं नरक है, दोनों ही होते इस भू पर।

नहीं कहीं अन्यत्रहैं दोनों, सबके सबहैं इस धरती पर।।

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