ऐ पाक के नुमाइंदे,क्यों तुम उधम मचाते हो ?
अपनी निरीह जनता को,बेमौत ही मरवाते हो??
क्यों करते हो बचपना,समझ नहीं क्यों पाते हो?
अपने तख्त की खातिर,अपनों को बरगलाते हो??
मुफ्त का बारूद गोला,मुफ्त मारक-यंत्र देता।
तुमसे खुद बनता नहीं,देकरके एहसान करता।।
बहका तुझे अपने पड़ोसी,से सदा झगड़ा लगाता।
फिर ये समझते तुम नहीं,क्यों बेवजह वह दान देता।।
तुम मूर्ख बन जीते रहो,लड़ते रहो खुद भाई से।
दूर बैठा वह तमाशा,देखता चतुराई से।।
विकसित न होगे तुम कभी, अपने करम के फेरसे।
पसारे रहोगे हाथ अपना,पश्चिमी ही देन से ।।
हम शान्ति के तो है पुजारी,हरगिज नहीं कमजोर है।
शान्तिका उपदेश देते, बढ़ते सदा उस ओर हैं ।।
अपनी हरकतोंसे बाज आजा,गुण्डे मवाली क्योंबनेंहो?
हाथ हमारा उठ गया,फिर सोंच लो ,क्या खैर हैं??
फिर आका न तेरा काम देगा, देखेगा तुझे पर दूरसे।
बिलबिताते तुम रहोगे ,पर वे हॅसेगें दूर से ।।
जो तुम करोगे खुद भरोगे,सोंचलो तो गौड़ सै।
फिर दोष मत देना किसी को,सोंचलो हर ओर से।।
गुमराह कर रखा है तूॅ, अपने युवक को देश में।
ऐसा बिगाड़ा है उसे, है नहीं कोई हौश में ।।
दुश्मनी का बीज बोया , बचपन से लेकर आज तक।
जिन्दगी उसकी बिगाड़ी,अपने राज सुखके लोभ में।।्
तुममें भरा है स्वार्थ,जिन्दा सिर्फ हो अपने लिये ।
देशकी जनता का दुश्मन,तुम हो भला किसके लिये।।
बीबी,बच्चे,दोस्त सारे,ब्यर्थ के जंजाल सारे ।
राज सुख का भोग ही,मकसद है बस तेरे लिये ।।
टकरा रहे तुम नशे में, डगमगाते आ रहे हो ।
चूर हो इतने नशे में, गुस्ताखी करते जा रहे हो ।।
होश में आ जा नहीं तो,दवा इसकी जानता हूॅ।
बन्द करेगी एक पुड़िया,बड़-बड़ जो करते जा रहे हो।।
सीख रहना ढ़ंग से,उधम मचाना बन्द कर अब।
हद पार करते जा रहे, चुपचाप रह ,बन्द कर सब।।
जब टूट जाये सब्र मेरा , तुम कहां बच पाओगे?
खोजते भी क्या मिलोगे,करलो मनन इस बात का।।