सोंचना चाहता ,सोंच पाता नहीं ।
भावना व्यक्त दिल का ,हो पाता नहीं।।
व्यक्त करना भी चाहूॅ ,तो कैसे करूॅ?
शुरू बात को मैं , कहाॅ से करूॅ ??
यहाॅ से शुरू या , बहाॅ से करूॅ ?
सोंच पाता करुॅ या , नहीं कुछ करूॅ??
सिलसिला जो शुरू हो,तो रुकने न पाये ।
कसक दिल का अपना , नहीं बिन सुनाये।।
रूक गया बीच में गर, तो मुश्किल बढ़ेगा।
दबाना कसक को क्या ,सम्भव रहेगा ??
किये व्यक्त बिन बात , रुकती कभी जो ।
बड़ी टीस देती है , देती तड़प वो ।।
सुना कर कसक दिल तो ,हल्का है होता।
टीस मिट जाती है , सुकुन भी है मिलता।।
दर्द जिसने दिया गर , दवा भी दिये।
उन्हें शुक्रिया भी , जो नश्तर चुभोये ।।
मकसद बुरा तो, नहीं है किसी का ।
रास्ता तो अलग , एक मकसद सभीका।।
बात सुनना है सुन लो, लगे गर सही ।
बात मानों अगर , बात जो हो सही।।