ये जिंदगी उसकी सफल , जो काम दे इन्सान का।
जिसने किया अपना करम,दे ध्यान भी इन्सान का।।
जीते सभी अपने लिये,गैरों का नहीं ध्यान है ।
काम,क्रोध, लोभ में ,मदमत्त हर इंसान है ।।
अवगुण भरे हैं ये सभी, सब जानकर अनजान है।
फिर क्यों न जाने लोग कहते, आदमी महान हैं ।।
गर आदमी महान हो , महान होना चाहिए ।
सोंच ,समझ आदमी का, उच्च होना चाहिए।।
विवेक जिनमें हो भरा , वह आदमी महान हैं।
विवेकहीन आदमी तो , पशु के समान है।।
आकण्ठ लोग डूब गये , पाप के हिचार मैं ।
नैतिकता भी बह गयी ,कलियुगी बयार में ।।
प्रेम का बन्धन सभी, टूटते ही जा रहे ।
कटुता के महासागर में , डूबते ही जा रहे ।।
भाई भाई न रहा ,प्यार प्यार न रहा ।
सम्बन्धियों के बीच में ,प्रेम वह न रहा ।।
आडम्बरौ के जाल में ,लोग खुद ही फॅस रहे।
दूसरों को देखकर ,मजे से लोग हॅस रहे ।।
दूसरों के दोष को तो , ढ़ूंढ़ कर निकालते ।
स्वयं की जो त्रुटियाॅ , नजर न उसपे डालते ।।
छिपि जो खुद में त्रुटियाॅ ,ढ़ूॅढ जो निकालते।
एकदिन शिखर पर जायेगे, लोग सब है मानते।।
इन्सान बन के आमे हो ,तो काम कर इन्सान का।
ज्ञान जो मिला तुम्हें , कर भला इन्सान का ।।