(आकाशवाणी पटना से प्रसारित)
तप्त तवा सी तपती धरती,सावन में राहत पायी ।
झुलसते पौधों के उपर, फिर से हरियाली छायी।।
आसमान में बादल छाये, उमड़-घुमड़ कर श्याम-श्वेत।
रिमझिम रिमझिम बूंदें बारिशसे,बुझा रहेहैं प्यास खेत।
हरे चादरसे ढ़क गयी अवनी, पौधों नेली फिर अंगराई।
झुलसते सारे जीव-जंतु भी, आफत से मुक्ति पायी ।।
चैन मिला पेड़ों-पौधो को, जनजीवन भी तृप्त हुआ।
लहर खुशीकी फैल गयी,राहतका अब एहसास किया।
वन में चिडियों का कलरव का,अब गूॅज सुनाई देती है।
खरहे खरगोशों सा जीवों की, चहक दिखाई देती है।।
छटा घटा का देख भला,अब मोर-मोरनियाॅ क्यो बैठे।
नृत्य लगे करने जमकर,कोई भी कैसे छुपकर बैठे।।
कहते हैं बारिश का मौसम,होती ही बहुत नशीली है।
सारे नर नारी खुश रहते,खुश रहते छैल-छबीली हैं।।
बहुत नशीली है होती, सावन की ये मस्त निशा ।
रिमझिम वारिश की बूंदें,भरती उपर से पूर्ण नशा।।
ये काली घटाएं सावन की,वन में मोर नचा देती ।
तेरी घटा तो लोगों का भी,मन का मोर नचा देती।।