कैसे बयाॅ करूॅ ?

दिल में है दर्द भरा , कैसे इसे बयाॅ करूॅ?

समझ न आये मुझे, कैसे इसे निदान करूॅ??

बन चुका दर्द ही अब, सबब मेरी जिंदगी का ।

कभी हो दूर अगर, कमी का एहसास करूॅ।।

चाहत में कोई तो नहीं,दिल में कभी बसा लूॅ जिसे।

स्वप्न में भी तो नहीं, दिल में जिसे बिचार करूॅ ।।

दिल के आईने में,बस प्रतिबिंब बस तुम्हारी है।

तेरी मूरत से सदा ,दिन रात मै दीदार करूॅ ।।

चाहोगी त्यागना , पाषाण दिल बना के कभी।

अंजाम तक न जाओगी, इस बात का गुरुर करूॅ।।

करोगी नफरते,दिल तोड़ हो ,मसल दो मुझे ।

पर हर कदम से आह तेरी,निकलेगी मैं यकीन करूॅ।।

रोककर कब तलक, रख पाओगी तूॅ आंसुओं को।

निकल ही जायेगी सब तोड़कर,फफक न पडो।।

बडा ही बेरहम, होती है अश्क की बूंदें।

खोल सब भेद देगी, बता तो कैसे रोकूॅ ।।

आज देश का क्या हाल हो गया?

दुनियां वाला दौलत का , दीवाना बन गया ।

दौलत ही आदमी का , पैमाना बन गया ।।

यूॅ तो कहते लोग , मात्र साधन है यह ।

आज साधन ही ,जीवन का साध्य बन गया।।

यही चैन का अब , लुटेरा बना।

था रक्षक , वही आज भक्षक बना।।

जाने कैसे बदल गयी , मनोवृत्तियां ?

सबमें कैसे गयी घुस , है विकृतियां ??

चोरीकर भी जो दौलत बनाते हैं लोग।

प्रतिष्ठा नहीं कम ,वे पाते है लोग ।।

आज कीमत बहुत कम है ,ईमान का ।

कद्र करते सभी ,आज बेईमान का ।।

सच ही हंस, चूगने आज दाना लगा।

कौवे को खाने ,मोती मिल गया ।।

सेटिंग का जमकर, जमाना आया ।

अच्छे पदों पर , लुचक्का छाया ।।

मैनेजर बैंकों का अब,लुटेरा बना ।

उनके सागीर्द ही ,उनका सहायक बना।।

चोरों लुचक्कों को पहरा मिला।

ऊॅट ही आज बूॅटो का रक्षक बना।।

आज चोरों पर मस्ती ,पूरी छा गयी ।

हौसला ही ईमानों की ,पस्ती हुई ।।

आयेगा फरिश्ता सुधारेगा सब।

लुचक्के मनोबल गिरायेगें तब ।।

इनके तादाद बहुत ,इनको समझें नकम।

खीर टेढ़ी ,निपटने का ,सबमें न दम।।

देशका है ये दुश्मन, उसमें नम्बर वन।

कर सकता है कुछ भी,बस पैसों का दम।।

छिपा है हम्ही में,घर का भेदी हमारा।

बेंच देगा तुरत ,बचना मुश्किल हमारा।।

देशका हाल देखें, यही आज है।

दौलत सबों का ही ,सरताज है ।।

हवस आदमी में ,जो घुंस जाता है।

निकाले न जल्दी निकल पाता है।।

बिन डुबोये नहीं , छोड़ता है उसे ।

बना कर अधम ,तोड़ता है उसे ।।

याद रखना सदा, मत लो हल्का इसे ।

हवस तो हवस है , न भूलो इसे ।।

बोलबाला हवसिरयों का ही आ गया ।

दौलत की नशा, सब पे ही छा गया ।।

सावन की छटा.

(आकाशवाणी पटना से प्रसारित)

तप्त तवा सी तपती धरती,सावन में राहत पायी ।

झुलसते पौधों के उपर, फिर से हरियाली छायी।।

आसमान में बादल छाये, उमड़-घुमड़ कर श्याम-श्वेत।

रिमझिम रिमझिम बूंदें बारिशसे,बुझा रहेहैं प्यास खेत।

हरे चादरसे ढ़क गयी अवनी, पौधों नेली फिर अंगराई।

झुलसते सारे जीव-जंतु भी, आफत से मुक्ति पायी ।।

चैन मिला पेड़ों-पौधो को, जनजीवन भी तृप्त हुआ।

लहर खुशीकी फैल गयी,राहतका अब एहसास किया।

वन में चिडियों का कलरव का,अब गूॅज सुनाई देती है।

खरहे खरगोशों सा जीवों की, चहक दिखाई देती है।।

छटा घटा का देख भला,अब मोर-मोरनियाॅ क्यो बैठे।

नृत्य लगे करने जमकर,कोई भी कैसे छुपकर बैठे।।

कहते हैं बारिश का मौसम,होती ही बहुत नशीली है।

सारे नर नारी खुश रहते,खुश रहते छैल-छबीली हैं।।

बहुत नशीली है होती, सावन की ये मस्त निशा ।

रिमझिम वारिश की बूंदें,भरती उपर से पूर्ण नशा।।

ये काली घटाएं सावन की,वन में मोर नचा देती ।

तेरी घटा तो लोगों का भी,मन का मोर नचा देती।।

दौलत के दीवाने.

दौलत के दीवाने हो , जहां के लोग सारे ।

सबोंको आज दुनियाॅ में, यही लगते हैं प्यारे ।।

अस्मत त्याग सकते , गम नहीं इनको तनिक भी।

नहीं पर त्याग सकते मोह,दौलत का खभी भी ।।

सकते ले किसी की जान, दौलत के लिये ही ।

कभी दे सकते अपनी जानको,इसके लिये ही ।।

ये दौलत चंचला है , जी जान से सब प्यार करते ।

नहीं कोई बांध पाया , लोग कुछ प्रयास करके ।।

जाती हर सबों के पास , रुकती कुछ समय तक।

किसी के पास कम ही बैठती,काफी समय तक।।

लोग सब देखते इनको, बड़े चाहत नजर से ।

नहीं कोई चाहता आकर,कभी लौटे इधर से ।।

माया मोह में,ऐसा सबों को बाॅध रखती ।

तिरगुण फांस में अपना ,सबों को बाॅध रखती।।

हो जाते विवस, चलता नहीं तब जोर इनपर ।

फाॅसना चाहते ,होता नहीं अवरोध उनपर ।।

पीछे है पड़े सब जानकर , अनजां नहीं हैं ।

हीरे से बदलते कोयले , ये ज्ञान नहीं है ।।

पर रोकना इनको , बहुत आसान है क्या ?

दौलत की नशा उतरे ,यही आसान है क्या ??

नशा उसकी नशीली भी, बहुत बेजोड़ होती ।

जबतक साथ रहती है ,नशा भी साथ होती।।

बोतल में भरी शराब, पीने पर नशा देती।

दौलत की नशा तो दूर से,भरपूर मर देती ।।

भारत की संस्कृति.

संस्कृति अति प्यारी भारत की,करते सम्मान सभी हैं।

अति सुन्दर अति मनमोहक कहते सभी यही है ।।

ऋषि-मुनियों का देश रहा , ज्ञान-गणों से भरा हुआ।

उनके बतलाये राहों पर ,चलकर ही इतना बड़ा हुआ।।

मानव को रहने-सहने का , सब राह दिखाया है इन्होने।

सम्मान किसे कैसे है करना, सभी सिखाया है इन्होंने।।

बड़े प्यार से स्वयं खोजकर ,राह बनाया है इन्होने।

खुद राहों को जाॅच परख कर,राह दिखाया है उन्होंने।।

देना है सम्मान किसे , आज्ञा पालन करना किनका ।

उचित सम्मान मिले सबको,ऐसा ही कहना है उनका।।

करें प्रेम सबको अपना कर,बाॅध प्रेम के बन्धन में।

नहीं लगे कोई गैर कभी ,हो समां हृदय के अन्दर में।।

‘अतिथि देवो भव’ कहा,हम सबने उनका मान दिया।

युगों युगों से हम सबने , माना और सम्मान किया ।।

सत्यवाद और कर्मवाद का, ज्ञान दिया है संतों ने।

‘अहिंसा परमो धर्म:’ज्ञान का,पाठ पढ़ाया संतों ने।।

बुद्धधर्म और जैन धर्म का,मार्ग दिखाया संतों ने।

धर्म सनातन , सिक्ख धर्म ,ये सभी सिखाया संतोने।।

हमने अपने कुछ धर्मों को,अन्य देश में फैलाया ।

जिसको धर्म लगा अच्छा, उन्होंने भी अपनाया।।

‘बसुध़ैव कुटुम्बकम ‘कोहमने अपने जीवनमेंअपनाया।

सम्मान सभी धर्मों को देंना,हम लोगों को बतलाता।।

करते हैं सम्मान सबौं को, तिरस्कार नहीं है हम करते।

चाहे मानें कोई धर्म, सम्मान सभी का है करते।।

संस्कृति हमारी है उत्तम,हम लुप्त नहीं होने देंगे।

पश्चिम देशों की पड़ती छाया,और नहीं बढ़ने देगें।।

हाल यह इन्सान का.

ये जिंदगी उसकी सफल , जो काम दे इन्सान का।

जिसने किया अपना करम,दे ध्यान भी इन्सान का।।

जीते सभी अपने लिये,गैरों का नहीं ध्यान है ।

काम,क्रोध, लोभ में ,मदमत्त हर इंसान है ।।

अवगुण भरे हैं ये सभी, सब जानकर अनजान है।

फिर क्यों न जाने लोग कहते, आदमी महान हैं ।।

गर आदमी महान हो , महान होना चाहिए ।

सोंच ,समझ आदमी का, उच्च होना चाहिए।।

विवेक जिनमें हो भरा , वह आदमी महान हैं।

विवेकहीन आदमी तो , पशु के समान है।।

आकण्ठ लोग डूब गये , पाप के हिचार मैं ।

नैतिकता भी बह गयी ,कलियुगी बयार में ।।

प्रेम का बन्धन सभी, टूटते ही जा रहे ।

कटुता के महासागर में , डूबते ही जा रहे ।।

भाई भाई न रहा ,प्यार प्यार न रहा ।

सम्बन्धियों के बीच में ,प्रेम वह न रहा ।।

आडम्बरौ के जाल में ,लोग खुद ही फॅस रहे।

दूसरों को देखकर ,मजे से लोग हॅस रहे ।।

दूसरों के दोष को तो , ढ़ूंढ़ कर निकालते ।

स्वयं की जो त्रुटियाॅ , नजर न उसपे डालते ।।

छिपि जो खुद में त्रुटियाॅ ,ढ़ूॅढ जो निकालते।

एकदिन शिखर पर जायेगे, लोग सब है मानते।।

इन्सान बन के आमे हो ,तो काम कर इन्सान का।

ज्ञान जो मिला तुम्हें , कर भला इन्सान का ।।