अनित्य हमारी पूरी दुनियाॅ ,अनित्य यहां के लोग सभी।
सचरअचर जितने दिखते,सारे हैं भरे अनित्य सभी।।
नहीं नित्य कोई दीवानों सा, पीछे किसी का भाग रहे।
अनित्य सदा पीछे अनित्य के,सरपट दौड़ लगा रहे।।
नहीं ढ़ूढ़ता नित्य कभी, नित्य तो नित्य ही होता ।
सबके सब पीछे अनित्य के,पर नित्य न दौड़ लगाता।।
नित्य नहीं कुछ इस दुनियाॅ में, चाहे हों वे चाॅद सितारे।
चाहे पर्वत हों या हों सागर,या नक्षत्र हों कोई हमारे ।।
जोकुछ बनता,मिट जाना तयहै,जोआयातो जानातयहै
निर्माण हुआ विध्वंशभी उसका,सारी होनी,होनी तयहै।
विधना सबकुछ रच देता,जो रचता वही घटा करता।
सारी घटनाओं का घटना,बड़े लगन से लिख देता ।।
जो लिख जाता वह घटता,टाले उसे नहीं टलता ।
प्रकृति कीयह रीति निराली,सदा सदासे चलता आता।
ऐप्रकृति तुमबड़े धन्य हो,कितने कर्मठ लग्नशीलहो।
तेराकर्म सदाचलता रहता,पलभरभी कहींनहीं रुकतेहो
पलपल का रखना ख्याल तुम्हें,कणकण का देना ध्यान तुम्हे।
भला बुरा जो कुछ करनाहै,हर बातोंका ख्याल तुझे है।
हमसब नमन तेरा करते,तेरे चरणो पर मस्तक धरते।
तेरे पग के रजकण से,चंदन सा टीका करते ।।
तुम सदा निभाते धर्म सभी,विचलित होते नहीं कभी ।
तेरे विचलित पलभर होने से,त्राहिमाम करतेहैं सभी ।।
फिर भी तुम नजर नहीं आते,पहचान नहीं हैं हम पाते।
अपमान तुम्हरा होता होगा, अनजाने में हो सकते ।।