जननी एवं जन्मभूमि.

डाल डाल से प्रसुन चयन कर , डाॅली में भर लाया हूॅ।

गूंथ-गूंथ कच्चे धागों में, हार बना कर लाया हूॅ ।।

बड़े प्रेमसे डाल गलेमें , हार बना कर लाया हूॅ ।

माॅभारत थोड़ा उपकार चुकाऊॅ,लेयही तमन्ना आया हूॅ।

तेरी ही गोदी में खेला,खेल -खेल मैं हुआ बड़ा ।

खाना दाना,पयपान करा ,बालक से तूने किया बड़ा।।

जननीजो जीवनदी मुझको,श्रम,कठिनकिया पाली पोसी।

कम नहीं कियातूने किंचित,तूंनेभी की बिलकुल वैसी।।

सम्मान बराबर ही देकर, दोनों का कर्ज चुकाऊॅगा।

देनेवाले दे शक्ति मुझे,मैं अपना फर्ज निभाऊॅगा ।।

कण-कण में एहसान भरा है,मेरे इस जीवन में तेरा।

उऋण सकूंगा कर अपनेको,सभी चुकाकर ऋण तेरा।।

असंभव सा तो लगता पर,करने का प्रयास करूॅ।

नहीं सभी तो चुक सकता,पर थोड़ा का आश करूॅ।।

जननी एवं जन्मभूमि, एहसान तेरा इतना होता ।

तेरी सेवा से नहीं बड़ा कोई,दुनियाॅ में पूजा होता ।।

सारे चयनित पुष्पों को मै, तुमको ही अर्पित करता ।

दोनों के पावन चरणों पर,नत मस्तक अपना करता।।

दे देना आशीष मुझे, अपनी अभिलाषा पूर्ण करूॅ।

जननी एवं जन्मभूमि की,सेवाकर जीवनसफल करूॅ।।

मेरे सर पर हाथ रहे, ले यही तमन्ना आया हूॅ ।

बीते जीवन सेवा में तेरी,यही मांगने आया हूॅ।।

करना नहीं निराश मुझे,उम्मीद बहुत ले आया हूॅ।

तूॅ माता ,सुत मै तेरा ,अधिकार यही ले आया हूॅ।।

बुना है जाल मानव ने.

जगत किसने रचा है ये , कहाॅ देखा किसी ने ।

रचयिता को बताया जो ,किया अटकल सबोंने।।

अलग सब नाम लेते हैं, अलग ब्याख्यान देते हैं।

तरीका भी अलग होता ,अलग पहचान देते हैं।।

अलग सब रास्ता होता,दिशा उनका अलग होता ।

तरीके को बदल थोड़ा , कुछ ही नाम अलग होता।।

मकसद एक ही होता ,अलग पर नाम देते हैं ।

रहे वर्चस्व उनका ही सदा, वे ध्यान देते हैं।।

मनुज में फर्क क्या ?सब एक हैं अभिन्न हैं सारे।

बनावट खून का ,सारा गठन भी, एक हैं सारे ।।

मजहब, धर्म, जाति में, मनुज को बाॅट कर रखा ।

बढ़ाकर फूट ,ब्यमनस्यता का बीज बो डाला ।।

अनेकों खंड में बाॅटा , जहर को भी भरा ऐसा ।

जीवन भर न मिलकर एक हो, कुछ कर दिया वैसा।।

चुभन होता रहे दिल में, मिटे ना टीस ही दिल का।

घटे ना दुश्मनी इनकी ,बढ़े कुछ दूरियां दिल का ।।

सदा वे फोड़ते रहते ,निरंतर लूटते जमकर ।

सगूफा छोड़ते रहते ,नया कुछ और ही रचकर।।

दो मजहबों के बीच में, झगड़ा लगा देते ।

दिलों में भर जहर को, प्रेम का दीपक बुझा देते।।

जो मित्र बनकर ज़िन्दगी भर, साथ था मेरा ।

वही है शत्रु बन कर ,खून का प्यासा बना मेरा।।

इनके चाल में फॅस , लोग तो बर्बाद हो जाते।

मगर उस धूर्त का मकसद , कामयाब हो जाते।।

जो चाहते वे लोग, उनका काम बन जाता ।

मानव जिंदगी पर बेवजह, परेशान हो जाता।।

बुना है जाल मानव ने , मानव ही फॅसाने को।

मानव फॅसा उल्लू को अपना,सीधा करने को ।।

अनित्य हमारी दुनियाॅ.

अनित्य हमारी पूरी दुनियाॅ ,अनित्य यहां के लोग सभी।

सचरअचर जितने दिखते,सारे हैं भरे अनित्य सभी।।

नहीं नित्य कोई दीवानों सा, पीछे किसी का भाग रहे।

अनित्य सदा पीछे अनित्य के,सरपट दौड़ लगा रहे।।

नहीं ढ़ूढ़ता नित्य कभी, नित्य तो नित्य ही होता ।

सबके सब पीछे अनित्य के,पर नित्य न दौड़ लगाता।।

नित्य नहीं कुछ इस दुनियाॅ में, चाहे हों वे चाॅद सितारे।

चाहे पर्वत हों या हों सागर,या नक्षत्र हों कोई हमारे ।।

जोकुछ बनता,मिट जाना तयहै,जोआयातो जानातयहै

निर्माण हुआ विध्वंशभी उसका,सारी होनी,होनी तयहै।

विधना सबकुछ रच देता,जो रचता वही घटा करता।

सारी घटनाओं का घटना,बड़े लगन से लिख देता ।।

जो लिख जाता वह घटता,टाले उसे नहीं टलता ।

प्रकृति कीयह रीति निराली,सदा सदासे चलता आता।

ऐप्रकृति तुमबड़े धन्य हो,कितने कर्मठ लग्नशीलहो।

तेराकर्म सदाचलता रहता,पलभरभी कहींनहीं रुकतेहो

पलपल का रखना ख्याल तुम्हें,कणकण का देना ध्यान तुम्हे।

भला बुरा जो कुछ करनाहै,हर बातोंका ख्याल तुझे है।

हमसब नमन तेरा करते,तेरे चरणो पर मस्तक धरते।

तेरे पग के रजकण से,चंदन सा टीका करते ।।

तुम सदा निभाते धर्म सभी,विचलित होते नहीं कभी ।

तेरे विचलित पलभर होने से,त्राहिमाम करतेहैं सभी ।।

फिर भी तुम नजर नहीं आते,पहचान नहीं हैं हम पाते।

अपमान तुम्हरा होता होगा, अनजाने में हो सकते ।।

पुष्प का माला किसे अर्पित करूॅ?

यह पुष्प का माला बताओ, मैं किसे अर्पित करूॅ?

किसके गले में डाल पहले,धन्य अपने को करूॅ??

आजादी के दीवाने को,जो जिन्दगी कुर्वाण कर दी।

सुख -चैन अपनी जिंदगीका,उनपे जो बलिदान करदी।

जिन्दगी जिसने जिया हो, स्वयं के खातिर नहीं ।

सर्वस्व न्यौछावर किया , अपने लिये रखा नहीं ।।

याकि फिर उनके गले में ,पुष्प का माला सजा दूॅ?

राजसुख में ऐश करने में भिड़े, उनको पन्हा दूॅ??

देशका प्रधान बन बनकर ,जो जगत का भ्रमण करते?

हसरत जो उनके दिल का था, उनको सदा हैं पूर्णकरते??

जो फिक्र उनको चाहिए,वे फिक्र तो करते नहीं ।

बात मीठी हैं बनाते , पूर्ण पर करते नहीं ।।

ख्वाब तो हरदम दिखाते , वादों का अम्बार करते ।

पूरा न करते हैं कभी , पूछें अगर जुमला बताते ।।

उनके गले में डाल माला , फूलों का सम्मान कर दूॅ ?

या देश खातिर लड़ रहे ,उन सैन्य का सम्मान कर दूॅ??

वैज्ञानिकों ने जो दिया है, विश्व को कुछ खोज कर।

कर जिंदगी कुर्वाण अपनी ,पर दिया है खोजकर ।।

उनके गले में डाल माला , कर्ज से उऋण कर लूॅ।

या गाॅधी -गौतम बुद्ध जैसों ,का जरासा ध्यान करलूॅ।।

थोड़ा बता दो सोंचकर , मैं करूॅ तो क्या करूॅ?

किसके गले में डाल माला ,सम्मान से उनको भरूॅ??





कौवा मोती खायेगा.

बदल रही है क्या दुनियाॅ , अपने कर्मों के फेर से।

जल्द नहीं सुनता अब कोई,सब सुनता अब देरसे।।

नहीं ढंग से बात करेगा, अपने मन का ही सभी करेगा।

समझाने से फर्क न पड़ता, नहीं बातपर गौड़ करेगा ।।

झुंझलायेगा , नहीं सुनेगा , हड़कत से परेशान करेगा।

माॅ-बाप को स्वयं डांटकर ,सिट्टी पिट्टी गुम करेगा ।।

पकड़ ऊंगली जोचलना सीखा,तर्जनी उसे दिखलायेग।

ऊॅची आवाज लगाकर उनको,अपनी बात बतायेगा ।।

मात-पिताअब दाई नौकर,बदतरउससे ब्यवहार करेगा

बात-बात पर कभी कभी,जमकर फटकार लगायेगा।।

नहीं करेगा कद्र बड़ों को,उनको मूर्ख बतायेगा ।

गुरुजनों को अपने सम्मुख,बिलकुल नहीं लगायेगा।।

भ्रष्टाचार का राज रहेगा, लोग भ्रष्ट हो जायेगा ।

सदाचारी बनकर बेचारा , कहीं छिपा रह पायेगा।।

सज्जनगण चुपचाप रहेगें , दूर्जन मौज मनायेगा।

मुण्ड गिनाने के इस युग में,ऊॅचा ओहदा पा जायेगा।।

ज्ञानी जनने ठीक कहा था,’एकदिन कलियुग आयेगा’।

हंस चुगेगा दाना, जमकर कौवा मोती खायेगा ।।

काला अक्षर भैस बराबर, मुख्यमंत्री तक बन जायेगा।

तेजपढ़ंका आई०ए०एस० बन,उनका चॅवर डोलायेगा।

बदल गयी क्या नहीं है दुनिया,बदल कहाॅतक जायेगी।

अनपढ़ गंवार चुन जायेगा,कौवा तो ही मोती खायेगा।।