सारा खेल समय का होता.

समय बीतता जाता, संग में सोंच बदलता जाता ।

साथ समय के अवनी का, हालात बदलता जाता।।

बदलाव नियति का खेल है,यह खेल निरंतर चलता।

कभी न रुकता पलभरभी,चलता जाता,चलता रहता।।

दृश्य भी एक नहीं होता , बदलता हरदम रहता ।

कभी कभी तो अनहोनी , दृश्य नजर भी आता।।

नयी चीज जब आ जाती , भूल पुराने को सब जाते ।

नयी,पुरानी चीज न होती ,यहतो सिर्फ समयकी बातें।।

आज नया जो है दिखता,कल वही पुराना हो जाता।

सिर्फ समय का फेरा है, नया पुराना हो जाता ।।

बदलाव कभी हरलोग चाहते, चाहे उससे दुख पाते।

मेवा-मिष्ठान उपलब्ध जिसे,तीखा,कडवा वेभी खाते।।

बदलाव बने दुख का कारण,लोग तभी भी चख लेते।

भले कष्ट का कारण बनता ,दारुण दुख भी पा सकते।।

बालक सा व्यवहार मनुज तो ,कभी-कभी कर देता ।

गर्म चीज भी खेल समझ कर, अपना हाथ जलाता।।

याद जलनका जबतक रहता,तबतक भूल नहीं करता।

साथ समय के याद न रहता, पुनः उसे दुहरा देता ।।

सचमुच महसूस वही करता ,जिसने दुख को झेला।

हासिल करने में इसको , कितने खतरों से खेला ।।

अनेकता में एकता.

भिन्न-भिन्न हैं भाषा सारे , भिन्न तरह का वेश है।

भिन्न तरह का रंग-रूप है,भिन्न-भिन्न परिवेश है।।

रहन-सहनभी अलग है सारे,खान-पानभी भिन्न भिन्नहैं।

कद-काठीभी भिन्न तरहके,रस्म रिवाजें सभी भिन्न है।।

कहींपे गर्मी ,तपती धरती, रेत- रेत ही भरा हुआ है ।

मरूभूमि भी बड़ी बड़ी है,कांटे बबूलका भरा हुआ है।।

कहीं है गर्मी,कहीं है ठंढ़क, कहीं वर्फ से जमीं ढकीहै।

कहीं तो सागर की लहरें हैं,पर्वत कहीं गगन चुम्बी हैं।।

कहीं कहीं जंगल घनघोर,हिंसक जीवों से भरा पड़ा ।

जन-जातिभी उसी बीचमें,जीवन अपना बिता रहा है।।

बहुत- बहुत चीजों में मिलते,और अनेकों भिन्नता ।

पर इन सारे भिन्नताओं में, मजबूत बहुत है एकता।।

हमसब इन चीजों से उपर, केवल है भारतवासी।

चाहे कश्मीरी होवें हम, या होवे केरलवासी ।।

फर्क न पड़ता रहें विहारी, या हम बंगाली हों ।

रहें मराठी ,उडिया भाषी, या कोई गुजराती हों।।

रहे राज्य कोई भी मेरा,पर हम एक देशके वासी।

हम सबसे उपर है केवल, केवल भारतवासी ।।

हमसब भारत में एक हैं ,चाहे जितनी हो भिन्नता।

अतः कहते हैं लोग सभी , है अनेकता में एकता।।

सभी धर्म के लोग यहां , पर सब भारत के लाल।

मजहब चाहे जो कुछ भी हो,दिल में नहीं मलाल।।

हम सब भारतवासी इनको, माता सा आदर देते।

जननी एवं जन्मभूमि को,हम सभी लोग नमन करते।।

बहुत बड़ी शक्तिहै हममें ,वह शक्ति है एकता ।

रखते बिचार हैं भिन्न मगर,हम नहीं भूलते एकता।।

ताकत का है नाम एकता, थाह न कोई पायेगा।

जो इससे टकरायेगा, वह स्वयं चूर हो जायेगा।।

अन्याय नहीं हम कर सकते, अन्याय नहीं सह सकते।

टकराने को मजबूर करे, हम उसे मसल भी सकते ।।