कब क्या हो जाये.

कभी कोई चीज का अवगुण,स्वत: गुण में बदल जाये।

कभी सागर का खारा जल ,मीठा भी हो जाये ।।

कभी कोई चोर, लुचक्के ,डकैत भी, इन्सान बन जाये।

किया जो रात-दिन हत्या ,बुद्ध-अनुयायी बन जाये ।।

फिर भी कभी दुनियां नहीं, बिश्वास कर पाये ।

भरोसा टूट जब जाये , जल्द वापस नहीं आये ।।

नहीं आसान होता है, खोया बिश्वास पा लेना ।

शीशा टूट जो जाते , उसे फिर जोड़ ले पाना ।।

टूटे दिल को फिर कोई जोड़ दे,सम्भव नही लगता।

शख्स कोई जोड़ दे प्रयास कर , पर गाॅठ रह जाता ।।

मिटा दे गाॅठ भी कोई , असम्भव को बना सम्भव ।

दुनियाॅ मान न पाती , यह कैसे हुआ सम्भव ??

कथा जगमें अनेकों लोग , सुनते सुनाते आ रहे ।

महर्षी बाल्मीकि की तरह ,महान होते आ रहे ।।

ऐसे लोग दुनियाॅ मैं, अक्सर कम बहुत आये ।

विशेष अवसर पर, विशेष कुछ कर्म ले आये।।

काम को पूर्ण कर वापस , सदा ही लौट वे जाते ।

ब्यर्थ बकवास में ,अपना समय बर्वाद न करते।।

कालिदास जी की मूर्खता , तो ख्यात है जग में।

किये कर्म से उनके, परिचित लोग हैं जग में ।।

बदले ही नहीं केवल ,ऐसे काम वे कर गये ।

नहीं जग भूल पायेगा , बड़े पहचान देकर गये।।

कभी कोई जानता भी क्या ,ये ऐसा कर दिखायेंगे।

कीर्ति जगत में उनकी , कभी धुॅधला न पायेंगे ।।

किसी को क्या बना दे कब , अचंभित लोग हो जाये।

कीर्ति की चमक उनकी , सदा बहार बन छाये ।।

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