दर्द अधिक वे ही देते हैं, जो अपने कहलाते हैं ।
सदा ही रहते बैठे दिल में,निकल नहीं वे पाते हैं।।
कोशिश कर भी उसे निकालो , निकल नहीं वे पायेगें।
लाख यतन कर के देखो , दूर नहीं हो पायेगे ।।
सलते दिल को सदा रहेगें ,नश्तर सदा चुभोयेगें।
रहम न होगा उनके दिल में ,सदा ही सलते जायेगें।।
यह तो माया का चक्कर है, नहीं किसी को छोड़ा है।
बड़े-बड़े ज्ञानी मुनियों को ,नजर झुका कर छोड़ा है।।
माया का तो रूप अनेकों,सब मिल घेर रहा सबको ।
बैठ गया है लेकर फंदा , फांसे चाहे जैसे सबको ।।
रहता चाहे जिसे फॅसाना ,ममता का जाल बिछाता है।
फॅसनेंवाला जैसा होता , तिकड़म वैसा अपनाता है ।।
प्रेम दुखों की जननी है, दुख जन्म यही पर लेता है।
किया प्रेम जिसको जितना ,दुख उतना वह देता है।।
सिरी फरहाद या लैला मॅजनू, देवदास अनारकली।
और अनेकों जग में आये , चढ़े प्रेम के सभी बली।।
पर लोग जिसे दुख कहते हैं ,सच्चा प्रेमी अपनाता है।
उसी प्रेम के मधुर रसों में , डूब स्वयं वह जाता है ।।
राजीवदल से जकड़ा भॅवरा , कैद रातभर रहता है।
नहीं उन्हें शिकवा होता , रस मधुर रातभर पीता है।।
प्रेम है क्या प्रेमी ही जानें,कोई अन्य भला क्या जानेगा।
हीरे को जो परख करे, जौहरी वही कहलाता है ।।
सत्य को दर्शाती हुई रचना 👌🏼👌🏼😊
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