ये दुनिया उसी की , जमाना उसी का ।
जो शराफत न सीखा, हुआ न किसी का।।
नहीं कोई तहजीब, न तौर, न तरीका ।
नहीं पास विद्या, न सीखा सलीका ।।
गलत काम सबको ही , मन आज भाये।
गलत जो न करता , वो मूरख कहाये ।।
बेईमानों के हाथों, सच्चाई बेबस है ।
सिवाये सिसकने के ,चलता न बस है।।
बुरा कर्म करना , उन्हें सिर्फ आता ।
जो बुराई में डूबे , मन इनको भाता ।।
चोरों, बेईमानों का , संगत उन्हें है।
नजरों में उनकी , सज्जन ही बुरे हैं ।।
रखता वो खुद को, नशा में डूबाये ।
कोई ऐसा नशा न, जो बच उनसे पाये ।।
डूबते हैं खुद भी, औरों को भी डुबाते।
नये लोग को भी, हैं पथभ्रष्ट बनाते ।।
इनकी संख्या बड़ी है, जमात बड़ी है।
कुपथ पे चलने की ,हिमायत बड़ी है ।।
इनसे बचकर निकलना, बड़ा कष्टमय है।
जो आये इधर ,उनका फँसना तो तय है ।।
बड़े जीवट हो जिनमें, बच पाते वही हैं ।
जिन्दगी के भँवर से, निकल पाते वही हैं।।
समय जब गुज़र जाय, बस पछतावा होए ।
जो पक्षी उड़ जाय, फिर पकड़ा न पाए।।
वर्तमान युग की कटु सच्चाई को दर्शाती हुई सुंदर रचना 👌🏼👌🏼🙏🏻😊
पसंद करेंपसंद करें
धन्यवाद, बहुत बहुत।
पसंद करेंपसंद करें
सादर अभिवादन 🙏🏻😊
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Reblogged this on सच्चिदानन्द सिन्हा.
पसंद करेंपसंद करें