जब लोग बहुत ऊॅचे हो जाते, नीचे वाले छोटे दिखते।
जरा आसमानमें जाकर देखें,सबके सब बौना दिखते।
हो जो जैसा दिखता वैसा,वही नजर अच्छी होती।
जो हो जैसा पर दिखे न वैसा, दृष्टिदोष यही होती।।
आज जमाना ऐसा है, नजरें धोखा खा ही जाती ।
जोकुछ रहता ,नजर कुछआता,अक्सर भुलयहीं होती।
किसके अन्दर क्याहै बैठा,नजर कहाॅ किसी को आता।
बाहर से जो जैसा दिखता, कहाॅ वही भीतर होता ??
अंदर बाहर एक जिसे हो,लोग बहुत कम वैसा होता।
बाहर से तो अच्छे दिखते,भरा अन्दरपर कचरा होता।।
लोग बहुत कम ऐसा होते,जोदेख नजर से भाप सके।
किसके अन्दर क्या राजछिपा,देख नजरसे जान सके।।
छोटा कौन ,बड़ा कौन है,वक्त दशा का होता फर्क ।
कितने बड़े-बडों को उसने,कर डाला है बेड़ागर्क ।।
सबकी अलग नजरिया होती,सोंचसबोंका अपना होता
महत्व सबोंका अलग अलग,वक्त सबोंको देता रहता।।
जहां पर लोग बड़े होते,महत्व न छोटों का होता।
लघु अगर होता ही नहीं, कोई बड़ा कौन कैसे होता??
तुलना ही बड़ा बनाता है,तुलना ही छोटा कर देता ।
तुलना नहीं हुए होते,तो कौन बड़ा या छोटा होता??
एक दूजे का पूरक दोनों, एक नहीं तो दूजा कैसा?
अहमियत बराबर दोनों का,बिना रात को चंदा कैसा??
खूबसूरत 👏👏
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बहुत बहुत धन्यवाद।
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