पल भर में रंग बदलते हैं, देखो ये दुनिया वाले।
माहिर अपने इस अवगुण में,है सुनलो ऐ दुनियां वाले।
अपनी जबान पर थे रहते,अटल वे किसी जबानें में।
नहीं बात की कीमत थोड़ी,होती नये जमाने में ।।
रहा साध्य मानों जीवन का ,धन- दौलत अर्जन करना।
कूकर्म पडे करना जितना , नहीं तनिक चिन्ता करना।।
जघन्य कर्म करके भी कोई,दौलत आज बनाता है।
चोरी ,घुसखोरी,अनाचार कर,भी धन दौलत लाता है।।
नहीं पूछते लोग कहां से, यह दौलत तुम लाये हो।
कितनी,घुसखोरी ,हत्या कर,यह दौलत तुम पायेहो??
करवाते एहसास न उनको, कर्म तुम्हारा उचित नहीं।
पढेलिखे और समझदार को,देता शोभा तनिक नहीं।।
सौ-सौ चूहे खा बिल्ली सा,क्यों तुम हज पर जाते हो ?
भोले भाले ग्रामीणों को,ठगकर क्यो मूर्ख बनाते हो ??
अपनी दौलत की चकाचौंध, ग्रामीणों को दिखलाते हो।
भोले ग्रामीणों की आंखों पर,दौलत कीधाक जमातेहो।
भोली जनता मति की भोली,बातों में तेरी फॅस जाती ।
नकली रूप तुम्हारी जो है,असली उसे समझ जाते ।।
सभी काम तेरा सबको तो,मूर्ख बना चल जाता है।
भोले भाले लोगों पर तेरा,यह जादू चल जाता है।।
आस्तीन का सांप हो तुम, सबकुछ वैसा ही करते हो।
जो तुम्हें बनाया योग्य आज,खुदही उसको डॅसते हो??
गिद्धदृष्टि पैनी तेरी , यहीं नहीं रुक जाती है ।
उनके दौलत मिट्टी के मोल , सारी तेरी हो जाती है।।
उनके भोलापन का कैसा ,तुम लाभ उठाये लेते हो।
उनके सारे दौलत अपने ही,नाम स्वय कर लेते हो ।।
नहीं भरोसा के काबिल,अब बच गये दुनिया वाले।
दौलत के चक्कर में फॅसकरअब नाच रहे दुनिया वाले।
का,क्रोध मद ,लोभ ,मोह,मिल ,नचा रहीहै दुनिया को।
नाच रहे दुनियां वाले सब,डुबो रहे इस दुनिया को ।।
जीवन का मकसद ही बन गये, दौलत अधिक बनाना।
कर्म,कूकर्म,अनैतिक,नैतिक,भूलध्र सिर्फ धन लाना।।