भला क्या है , बुरा क्या है, सबों को ज्ञान हो जाये।
जन्नत से बहुत ऊॅचा , धरा का नाम हो जाये ।।
धरा ही कर्मस्थल है ,यहीं सब कर्म है होता ।
भला कीजै बुरा कीजै ,जो चाहें सब यहाॅ होता ।।
यहाॅ जो कर्म होते हैं , सबों पर नजर कोई रखता।
अधिक सुकर्म जो करते, उन्हें पुरस्कृत कोई करता।।
गलत जो कर्म करते हैं, गलत संस्कार वे पाते ।
अधम जो लोग होते हैं , वही मन को उन्हे भाते ।।
धरा तो कर्म का स्थल, यही सबकुछ हुआ करता।
यहीं पर लोग जो करते , उचित परिणाम भी मिलता।।
चयन जिनका यहाॅ होता , जन्नत को वही जाता ।
वहाॅ की सारी सुविधाएं, उनको मिला करता ।।
यही से स्वर्ग की सींढ़ी , समझ प्रारम्भ हो जाती ।
चयनित लोग को इस मार्ग से, ही भेज दी जाती।।
स्वर्ग से बहुत ज्यादा ही ,धरा का नाम ऊॅचा है ।
धरा से कर्म अच्छा कर,यहाॅ तक कोई पहुंचा है।।
धरा पर कर्म करने के लिये, आना उन्हें पड़ता ।
किसी का पुत्र बन उनको,रहना यहाॅ पड़ता।।
यहाॅ पर आगमन उनका , अवतार कहलाता।
बचे जो काम रह जाते ,निपटाना उन्हें पड़ता ।।
धरा में और जन्नत में ,यही तो फर्क होता है।
महत्ता एक दोनों का ,अलग कुछ भी न होता है।।
यहाॅ बढ़ती हुई बुराईयों पर, लगाम कस जाये ।
जन्नत से अधिक ऊॅचा , धरा का नाम हो जाये ।।