समझ ओझल सब की नजरों से, कूकर्म लोग करते हैं।
यहां कहां कोई देख रहा, सोंचा सब करते हैं ।।
कुछलोग डूबकर पीतेपानी,समझते नहीं किसीने देखा।
झोंक धूल सबकेआंखो,किया करिश्मा किसने देखा??
दूर-दूर नहीं कोई जो,मेरी करनी देख सके।
लगाई डुबकी पीया पानी, नहीं इसे कोई समझ सके।।
सबके सब गफलत में पड़ गये,खा गये सारे धोखा।
मैंने ऐसा काम दिया कर,पर कहां किसी ने देखा ??
भूल गया कोई नजर गड़ाये,जग की हरकत देख रहा।
कण-कण पर उनकी नजरें,तस्बीरें सारी खींच रहा।।
कौन कहां ,कर रहा कोई कब, उनकी नजरों में सब है।
जो समझ रहा खुद को ओझल,उनके मन का भ्रम है।।
प्रकृति तो सबकुछ देखरही,यह सबको बात विदित है।
यह बात पता भी उनको ,होना क्या और घटित है।।
लाख छिपाना चाहे कोई,पर नहीं छिपा पाता हैनं ।
दूर दृष्टि से ओझल कुछ भी, कभी न हो पाता है।।
कर्मों का परिणाम अटल,विज्ञान सत्य कहता है।
सारे क्रिया की प्रतिक्रिया ,होती समान कहता है।।
फिर भी इसे भुला दे मानव,तय प्रतिफल है मिलना।
जितना अपनेको धूर्त समझलें,अटलको नहींहै टलना।
फिर भी वहम न छोड़ा मानव, दुख पाने को तैयार रहे।
सामर्थ्यवान खुदको समझे,चाहे खुदको भगवान कहे।।
होता घमंड है बुरी बला,जो किया बुरा हो जाता है।
निश्चित नाश होनातय उसका,समयन ज्यादा लगता है।
बहुत ही सुंदर👌🏼 यथार्थ को दर्शाने वाली अनुपम रचना है 🙏🏻👏👏
पसंद करेंपसंद करें
बहुत बहुत धन्यवाद,महोदय।
पसंद करेंपसंद करें