जीवन के इस खेल में, महज सब झूठ ही होते ।
सच्चे कुछ नहीं होते ,बस एक स्वप्न ही होते ।।
स्वप्न जो देखते हैं लोग, सत्य तो वह नहीं होता।
निद्रा टूटने भर देर है , सब लुप्त हो जाता ।।
माया का बना यह खेल है ,जो दिखता है सभी माया ।
खेल कुछ देर ही चलता , हो जाती लुप्त भी माया ।।
फिरभी लोग पीछे भागते , भगाती खूब यह माया ।
लोग सब स्वयं आ फॅसते , फाॅसती हर तरह माया ।।
यह बाजार माया का ,सभी खरीदार माया का ।
खरीदने बेचने वाले , सारे उपज माया का ।।
डूबे लोग सारे है यहाॅ , बड़े भवजाल में फॅस कर ।
फॅस कर भी बड़े खुश हैं ,ऐसे नासमझ बन कर ।।
चक्कर यह अजूबा है , फॅसकर लोग खुश होते ।
डूब आकण्ठ कीचड़ में , स्वत: ही लिप्त हो जाते ।।
प्रभाव माया का , इन्हें ऐसा बना देता ।
भला क्या है ,बुरा क्या है ,ज्ञान को भूल ही जाता।।
पथ से भटकने का मार्ग , प्रशस्त कर देती ।
सुपथ से वह कुपथ की ओर,लेकर चली जाती।।
निजात पाना भी नहीं ,आसान है उससे ।
किये प्रयास तो कुछ लोग, रहे पर असफल उससे।।
साधा लोग कुछ उसको ,पर कमलोग हैं ऐसे।
अमर वे लोग हैं जग में , अन्यथा हैं कहाॅ वैसे ??