चलो लेखनी उठो आज, अपना कौशल दिखला दो।
बहुत जरुरत आ गई , करतब अपना दिखला दो।।
भटक रहे हैं आज लोग, अपने कर्तब्य के राहों से।
कर्तब्यनिष्ठ मजबूर पड़े ,भ्रष्टाचारी के चालों से ।।
बढ़ रहा मर्ज धीरे-धीरै, आक्रामक है होता जाता।
बढ़ते बढ़ते धीरे धीरे , संक्रामक भी होता जाता ।।
उठो रोक लो मार्ग बन्द कर,तुरत अपने शत्रु को ।
जो जगकर भी सोयै रहते , तोड़ो उनके निद्रा को।।
दैश -प्रेम का भाव अब, कमा जाता सब लोगों में।
स्वार्थपरता का रोग , घुसा जाता उन लोगों में।।
देशप्रेम का भाव भरो, सब को पुनः जगा दो ।
चलो लेखनी उठो आज ,अपना जौहर दिखला दो।।
जो सोये पड़े हैं अर्द्धनींद में, पहले उसे जगा दो ।
देश-प्रेम जो सुप्त पड़ी ,उनको झकझोर जगा दो।।
दोष नहीं उनका इसमें , दोषी नेतृत्व है जिनका।
पाठ्यक्रम निर्माता जो ,दोष बहुत है उनका ।।
उठो लेखनी लेखनी राह दिखा, जो भटके है राहोंको।
निर्देशक बन उन्हें सम्हालो, मग से भटके लोगों को ।।
माहौल यहाॅ ऐसा पैदा कर,,हो देशभक्ति जन-जन में ।
देशप्रेम रग-रग में फैले ,रुधिर बन मानव रग में ।।
बस तुममें हीशक्ति निहित,यह काम तुम्ही कर सकती।
सोये बिखरों को पुनःजगाना,कोई औरनहीं करसकती।
करो देर अब और न ज्यादा,अवगुण अबसभी भगादो।
उठो लेखनी देर न कर अब, चमत्कार दिखला दो ।।