काश विधना ने नहीं , मुहब्बत बनाई होती ।
दुनियाॅ दीवाना कह उसे,सताई नहीं होती ।।
मुहब्बत चीज अति पावन, नहीं पर दर्द कम देती।
पर जो डूब जाते है, कहाॅ उनको सता पाती ।।
जो मुहब्बत ही नहीं करते, उसी में डूब भी जाते।
मुहब्बत का सुधा उनको, बनाये मस्त ही रखते ।।
यह तो खुदा की देन है, बरदान कह सकते ।
मनुज को दे वही रखा , कृपा का पूॅज उन्हे कहते।।
यह तो चीज है नाजुक ,कोमल दिल में ही रहती ।
जिनके दिल हो पत्थर का , वहां हरगिज नहीं रहती।।
कोमल दिल जिन्हें होते , कभी कमजोर न होते ।
सहनशशक्ति उन्हें होती , पर डरपोक न होते ।।
मीरा ने मुहब्बत की , शिरी फरहाद ने भी की ।
अनेकों अन्य ने जैसे , सॅवरी राम से भी की ।।
यह अनुराग पैदा ,हर दिलों में ही हुआ करता ।
उनके विना तो आदमी ,जग में नहीं रहता ।।
पर कुछ क्रूर , निर्मम आदमी , भी हुआ करता।
जन्म-जात से वह भी नहीं, परिवेश से बनता ।।
परिवेश का प्रभाव तो , हर जीव पर पड़ते ।
अछूता कोई भी संसार में , इससे नही होते ।।
प्रकृति का यह नियम अपना,चलता सदा रहता।
विकास का सिद्धांत ही ,इसपर टिका रहता ।।
प्रकृति कायह नियम रुकजाये तो,विकास रुक सकता।
सारे जगत की सृष्टि का , विनाश हो सकता ।।