बदले बदले नजर सारे,आते हैं लोग।
रहे अब सामाजिक , नहीं आज लोग।।
ज्ञान , विज्ञान में , बढ़ रहे हैं सभी ।
घिर रहे अपने में ही , सभी के सभी ।।
फिक्र करते नहीं ,दूसरों का कभी ।
स्वार्थ अपना सदा , देखते हैं सभी ।।
एक पड़ोसी का मतलब ,रहा अब नहीं।
उनके सुख-दुख से , मतलब रहा ही नहीं।।
प्रेम की थी जगह , डाह ने ले लिया ।
स्नेह की थी जगह वो,जलन ले लिया ।।
एक पड़ोसी का सुख , दुख का कारण बना।
उनका दुख इनके दुख का , निवारण बना ।।
दैखिये आजका है , ये कैसा समाज ।
कैसा दिखते हैं बदले, सभी लोग आज ।।
स्वार्थ में जा रहे ,डूबते आज लोग।
है शिक्षित,अशिक्षित ,सभी आज लोग।।
शिक्षित समझते हैं ,जो खुद को लोग।
तोड़ डाला सामाजिक पकड़ वे ही लोग ।।
अशशिक्षित बेचारे , नकल में लगे हैं ।
उनके राहों पर चलने,के पीछे पड़े हैं ।।
शिक्षितों पर वे ऊॅगली , उठाते नहीं ।
गलत को गलत भी , बताते नहीं ।।
क्यों दिलों जान से , प्यार करते उन्हें ।
उनकी गलती गलत ,भी न लगती उन्हें।।
श्रद्धा की नजर से ,उन्हे देखते हैं ।
उनको अपने से ऊपर ,सदा सोंचते हैं।।
खूद ही भोले हैं ,निर्मल वे रहते सदा ।
दूसरों को भी निर्मल , समझते सदा ।।
फायदा बस इसी का , उठाते वे लोग ।
भोले भालों को , केवल सताते हैं लोग ।।
मीठी बातें बनाकर , फॅसा लेते हैं ।
झूठी बातों का जलवा ,दिखा देते हैं।।
काम अपना वे उनसे, सधा लेते हैं।
अपना तिकड़म में,उनको बझा लेते हैं।
फॅसने और फॅसाने में, माहिर हैं लोग ।
बदले बदले नजर , सारे आतै है लोग ।।