छोटी सी है दुनियाॅ हमारी , छोटे -बड़े सबलोग हैं।
पर कौन हैं अपने हमारे, इनमें कितनें लोग हैं ??
ढूंढना आसान न उसमें,लगते एक जैसे लोग हैं।
पर सोंच तो अपना सबों का,स्वतंत्र सारे लोग हैं।।
पहचान लेना आदमी को,काफी कठिन यह काम है।
किसके दिल में क्या छिपा,क्या जानना आसान है??
मनोविज्ञान सारा फेल होता, लोग कुछ के सामने।
धज्जियाॅ देते उड़ा , वे लोग अपने सामने ।।
जिसने बनाया मानवों को,दे ज्ञान का तोहफा उन्हें।
कुछ अभागे लोग उन्हीं में, ब्यर्थ कर डाला उन्हें ।।
सबको बनाता एक जैसा, मूर्तिकार अपनी मूर्त्तियाॅ।
एकाध कोई उसीमेंसे , निखर बनती सुर्खियाॅ ।।
शिल्पी कहाॅ जाने छिपा है , निर्माण करता जा रहा।
विभिन्न गुण और शक्तियाॅ भर , मानवों को गढ़ रहा़।।
किससे कराना काम है क्या,सिर्फ वही तो जानता।
कैसे करेगा क्यों करेगा , केवल उसी को है पता ।।
शिल्पीकार केवल ही नहीं , निदेशक बड़ा सबसे यही।
कब किसे क्या रोल करना, सिर्फ बता सकता यही।।
उसके बिना निर्देश के, कुछ कमी होता नहीं ।
जो चाहता वहहै कराता ,कुछ अन्य कर सकता नहीं।।
दुनियाॅ बनाई जो किसी ने, क्या बनाई खूब है ।
हम सब खिलौने मात्र उनके,क्या नहीं ताज्जूब है??