नीर भरी बदली और तेरी ,नयनों में क्या फर्क रहा।
दोनों ही जल बरसा देती, जब भी उनका जी चाहा।।
तुम दोनों जीवनदाता हो, बिन दोनों जीवन कैसा।
नहीं रहे दोनों में कोई, कमी खलेगी तब कैसा।।
नीर ,नयन बिन जीवन का, क्या संभव है बचना ।
नयन बिना जीवन दुष्कर,पर जल बिन बचेगा कितना।।
जल बरसाते हैं दोनों ही, पर भेद अलग दर्शाता है।
बरस मेघ खुद जीवन देता,आंसू ग़म बतलाता है।।
काम अहम दोनों का रहता, जीवन दोनों से चलता है।
कमी किसी का गर हो जाये, जीवन दूभर हो जाता है।।
दोनों ही नीर हुआ करते, पर कर्म अलग दोनों का।
एक नयन का रक्षक है, एक सकल जीवन का ।।
पर महत्व दोनों का अपना, दोनों ही धर्म निभाते हैं।
निरत रहें दोनों कर्मो में, ‘कर्म ही धर्म’ बताते हैं।।
दोनों हैं वरदान प्रकृति के, जीव-जंतु सबके खातिर।
मुफ्त बाॅटती रहती खुद, सबके जीवनरक्षण खातिर।।
आभारी हैं हम मानव, देख प्रकृति के कामों को।
क्या-क्या चीजें दे रखी है, हम सब के जीवनयापन को।।
जग में जितने जीव-जंतु हैं, सब तुझसे अनुगृहीत रहें।
जो दे रखा, सब तेरा, हम बस समुचित उपयोग करें।।
जितना तुमने दे रखा, जीवनयापन को काफी है।
गरज का है हर चीज मगर, बस लालच को नाकाफी है।।
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