छलकता तेरी आंखों से मुझे , जाम नजर आया।
काली घटा सी जुल्फ में ,लिखा पैगाम नजर आया।।
मुखरे की निकलती तेज में , कुछ अजीब नजर आया।
दिव्य-ज्योति का मुझे , एहसास हो आया ।।
तूॅ धरा की अमानत हो , या हो हूर जन्नत की ।
मैं क्या तुझे समझूॅ , समझ में कुछ नहीं आया ।।
तेरी शोख चितवन में ,भरा जादू नजर आया।
चितवन बाण से आहत ,सारा जहान नजर आया।।
रोको निकलते वाण अपने ,अब और मत मारो ।
सम्भावना बचने का हमें , थोड़ा कम नजर आया ।।
घायल हो गया गम्भीर ,तेरे चितवन के बाणों से।
चुभोते वाण में मुझको , उभरता प्यार नजर आया ।।