(जिंदगी की पहली कविता , आपकी सेवा में)
किया भगीरथ कठिन तपस्या ,लाया धरती पर तुम्हें उतार।
उद्धार किया अपने पुरखों को,शिव जटा से तुम्हें सम्हार।।
हुई पावन धरती,हुए धन्य जन, लोग तुम्हारे आने से।
जीवन मिला असंख्य लोग को,तेरा अमृतजल पाने से।।
तेरे गुण के गाथाओं का, में तुच्छ प्राणि क्या गाऊंगा?
थोडी सी बातें ही बस,, कुछ तोड़ फोड़ कह पाऊंगा।।
तेरे जलकी महिमा को मैं, जितना सुनता जाता हूॅ।
नयी -नयी कुछ चीजें उसमें,नित्य जानता जाता हूॅ।।
सुनता हूं तेरे नाम मात्र यम, भाग दूर हो जाता है।
श्रद्धा और स्नान ध्यान से ,पीड़ा मन का मिट जाता है।
पर हाय! तुझे मानव माॅ , जिसमें जीवन का संचार किया।
वहखुद अपने हाथों तुझपे,क्या-क्या अत्याचार किया।
तुम थी निर्मलवह मल डाला,की गन्दी तेरी दामन को।
हया शर्म सब भूल चुका,की अपनी मनमानी को ।।
थी पूज्य , नहीं पूजा मानव ,देवस्थल का अपमान किया।
पूजा के बदले मनोरंजनका,कुटिल कार्य संधान किया।
माॅ कुपित हुई थोड़ी मन मन,बस किंचित ध्यान हटाई थी।
आसमान से तब थोड़ा,नव संदेशा आई थी ।।
वत्स तोड़ मत हद को तूं,बस तुझे बुझाये देती हूं।
मत छेड़ प्रकृति को हरदमतूॅ,बस तुझे बतायेदेतीहूॅ।।
वाणों से धारा रोक देवव्रत,माॅ से खेला करते थे।
थोड़ी सी रुक मां स्नेहमयी,निज मार्ग गमन वे करतेथे।
सबकाम प्रकृतिको करनेदे,निज धर्म निभाने दे उनको।
थी पावन बड़ी ,बड़ी निर्मल थी,वैसा ही रहने दे उनको।
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