जिसने बनाया आदमी , कुछ और कर देते।
एहसान यों काफी किये , थोड़ा और कर देते।।
श्रेष्ठ जीवों में बनाया , कुछ और क्या करते ।
भरे जो लोभ,लालच को ,थोड़ा और कम भरते।।
दिये विकृतियों में ही, भटकता रह गया मानव।
बनाया आप का ही जाल में,उलझा रह गया मानव।।
सुपथ पर ही चलाने का, जब उद्देश्य ही था आपका।
पथ तो बताना भी उसे, कर्तब्य पर था आप का ।।
भवसागर में डालकर क्यों, उसे अकेला छोड़ दिया।
बिना सिखाये तैरना ,फेंक उसे क्यों छोड़ दिया ।।
यूॅ हमें डुबोते उतराते तो, भवसागर को पार कराया।
हमें यहाॅ क्या करना होगा,दिशा निर्देशभी नहीं कराया।
क्या करनाहै जग में जा कर,बात यही तो नहीं बतायी।
समझाया हो तो हो सकता है, बातें हमको समझ न आयी।।
करें कृपा मानव पर इतनी, निर्देश हमें थोड़ा देदें।
गर समझ रहे हो तो मानव को,राह सही बतला दें।।
फिर भी पथपर नहीं चले तो, विवस उसे है कर देना।
गर रोग दूर करना है तो,कड़वा भी घूंट पिला देना ।।
स्वस्थ्य उसे है रखना तो, मीठा कड़वा का मोह नहीं।
चाहे जो करना पड़ जाये, करना कोई क्षोभ नहीं ।।