दुनियाॅ को क्या , कारवां एक कहें ?
कुछ तो मिलते रहें , कुछ बिछड़ते रहें।।
ये रुकता नहीं , चलता जाता सदा ।
भले संग में हम , रहें ना रहें ।।
कारवाॅ याद रखता , नहीं है किसी का।
गये ,जो भी आये , संग बढ़ता रहे।।
आने जाने का गम , उनको है ही नहीं ।
आये जायें कहीं , कारवाॅ पर रहे।।
नियम में बॅधे ,होते सब के ही सब ।
स्वधर्म को नियम से , निभाते रहें ।।
जो भी शामिल है सब, सारे अपने हैं सब ।
कारवां को निरंतर , बढाते रहे ।।
यै रुका न कभी , ना रुकेगा कभी ।
बेपरवाह पथ पर ,ये बढ़ता रहे ।।
यही नाम चलने का , जिंदगी है शायद ।
कारवां ये निरंतर , चलता ही रहे ।।
इन्हें आॅधी का डर , ना है तुफान का भय।
अपनी मस्ती में गोते , लगाते रहें ।।
आज तो रह लिये , कल को जाना कहाॅ ?
इनसे बेफिक्र , मस्ती में , डूबे रहें ।।
जो औकात है ,ऑखों के सामने सब ।
फिर ये चिन्ता ही क्यों , कर सताती रहे ??
इस दुनियाॅ को क्या , कारवां एक कहें ?
कुछ तो मिलते रहें , कुछ निकलते रहें ।।
Bahut बढ़िया
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