नीयत आजकल इन्सान की,अक्सर बिगड़ जाती।
उनपर लोभ , लालच,मोह का, चश्मा जो चढ़ जाती।।
ये सारी विकृतियां इन्सान को, शैतान कर देती ।
जिनका यश चमकना चाहिए, उसे मलीन कर देती।।
जो होता ऑख का तारा, वही बन किरकिरी जाती।
बनी अट्टालियें यशों की, ध्वस्त हो जाती ।।
परिदृश्य ही सारा वहाॅ का, है बदल जाता ।
सम्मान का था रूप जो, घृणा का पात्र बन जाता।।
सम्मान पा लेना किसी से, आसान तो होता नहीं।
ब्यवहार से अपना बनाना,गलत तो होता नहीं ।।
सम्मान पाने के लिए, सम्मान देना चाहिए ।
किसीको भूलकर हरगिज नहीं,अपमान करना चाहिए।
प्यार से काम जो बनता , कभी अपमान से होता नहीं।
यूॅ अपमान करना किसी को,शोभा कभी देता नहीं।।
सम्मान बस शंभु कभी, विषपान तक भी कर गये।
धारण गले में कर उसे, जनहित बड़े वे कर गये ।।
दुनियाॅ रहेगी जब तलक ,याद सब करते रहेंगे ।
श्रद्धा सुमन उनपर सदा ,अर्पित किया करते रहेंगे।।
हैवानियत, इन्सानियत पर, जुर्म ढाते ही रहे हैं।
पर समय का चक्रमें, मार खाते ही रहे हैं ।।
हैवानियत के सामने, घुटने टेकना अच्छा नहीं ।
मसीहा कोई आता सजा देता , छोड़ तो देता नहीं।।
प्रकृति देर तो करती कभी , पर छोड़ तो देती नहीं।
कियेगये कर्मका भुगतानबिन ,रहकभी सकतीनहीं।।