अपनी आजादी

वर्ष तो हो गये तेहत्तर , देश की आजादी का।

थी तिथि पन्द्रह अगस्त ,सन था सैंतालीस का।।

हमें मुक्ति मिली , दासता मिट गया ।

नभ में अपना तिरंगा ,लहराने लगा ।।

हम सब अपने वतन का , करनधार हैं ।

जान से भी अधिक, करते हम प्यार हैं ।।

हो गये आजाद , आ गये आजादी का दिन ।

बीत गये अब हमारे , गुलामी का दिन ।।

देश को अब बढाना , मेरा काम है ।

ज्ञान , विज्ञान देना , मेरा काम है ।।

जान से भी अधिक, मेरा प्यारा तिरंगा।

देश का शान मेरा , है यह तिरंगा ।।

खो चुके जान कितने , तो पायी आजादी।

कुर्वाणी पूर्वजों की , बन आयी आजादी।।

दहलता है दिल ,उनकी कुर्वानी सुन कर ।

कैसे हासिल किये , उस कहानी को सुनकर।।

जान कितने दिये कैसे , बातों को सुनकर।

आज क्या कर रहे , उनके घातों को सुनकर।।

कमी देशभक्ति में ,क्या हो रही है ?

राजसुख भोगने में,सारी जनता पड़ी है??

गौर कर सोंचना है , निहायत जरूरी।

दूर करनी कमी को , अति ही जरूरी।।

प्रेम हो देशवासी में , है यह जरूरी ।

बिना प्रेम गणतंत्र , रहेगी अधूरी ।।

दोष नेतागणों की , नहीं कम है इसमें ।

त्याग की भावना कम ,बची ही है इनमें।।

गुलामी की पीड़ा ,न समझी ये पीढ़ी।

दर्द कितना हुआ था ,न जानी ये पीढ़ी।।

दर्द को हमने उनको , समझा ही न पाये ।

हॅसते लटके फाॅसी ,ढंग से समझा न पाये।।

फर्ज मेरा था उसको, निभा ही न पाये ।

देश का प्रेम क्या है , बता ही न पाये ।।

पथ ये पीढ़ी नयी को ,बताना था मुझको ।

क्या पथ है सही , यह दिखाना था मुझको।।

पेड़ जो भी लगाया , ढंग से न लगाया ।

पर जैसा लगाया , वही फल तो पाया ।।

अभी भी सुधर लें , बिगड़ी बन जायेगी ।

कुछ दिनों में,सभी कुछ सुधर जायेगी ।।

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