सितम जग में तूॅ ढाया है,जग को ही हिला डाला।
नहीं वख्सा किसीको चीनियों,सब को रुला डाला।।
न अपनी माॅ को वख्सा तूॅ ,न अपने बाप को छोड़ा।
न अपने भाई बन्धु को , किसी को तुम नहीं छोड़ा।।
तुम खुंखार जीव -जंगली, केवल रूप मानव का ।
कूकृत्य तूने जो किया, नहीं यह कृत्य मानव का ।।
हॅसता खेलता संसार को , तुमने रुला डाला ।
हो कितने बड़े शैतान , अपना रंग दिखा डाला।।
रे कीटभक्षक-कीट , मानव तुम न हो सकता ।
तेरा यह रूप हैं नकली , असली हो नहीं सकता।।
तुम एक छद्मवेशी है ,मानव रूप धर आया ।
हिंसक जानवर से भी , बदतर बन के तूॅ आया ।।
जग के मानवों को तुम , बहुत बदनाम कर छोड़ा ।
गिरा कर जानवर हिंसक ,बना कर ही तूॅ छोड़ा ।।
जिसने भी रचा तुमको , उसे बदनाम कर छोड़ा।।
मानुष जीव को हर जीव से, नीचे गिरा छोड़ा ।।
रचयिता जो भी हो तेरा , शर्मसार कर छोड़ा ।
जिस अरमान से तुमको रचा,बेकार कर छोड़ा।।
घृणा का पात्र हो गये तुम,घृणित तेरे काम सब हो गये।
ऐ हुक्मरानों चीनियों , सृष्टिनाश तुम कर गये ।।
कूकर्म का प्रायश्चित तुम्हारा,हो न पायेगा ।
निकृष्टता का पाप , तुमसे घुल न पायेगा ।।
मौत कुत्ते सा तुम्हरा ,हो गया अब तय ।
तूं कलंक मानव जाति का,शीघ्र निश्चित तेरा है तय।।