मेरे देश में इन्सान का ,सोंच कैसा हो रहा ।
दौलत सबों का तो बढ़ा,पर संस्कार वैसा ही रहा।।
सोचिए इस देश का, क्या हाल होता जा रहा?
हराम में खाने की प्रवृति , लोगों में जगता जा रहा।।
मुफ्त भोजन की ब्यवस्था ,गर कहीं कोई कर दिया ।
लेकर कटोरा हाथ में,वहाॅ पहले उपस्थित हो गया।।
सरकार जितनी भी बनी , सब लूटने में लग गयी ।
टुकड़े उसी से तोड़ थोड़ी , लोगों में बॅटवाती गयी।।
जो हराम का भोजन करे, स्वाभिमान भला कैसे रहे।
शर्म हया जिसमें न हो , इन्सान वह कैसा रहे ??
एक इन्सान और एक जानवर में,फर्क तो केवल यही।
इन्सान में स्वाभिमान होता , पर जानवर में तो नहीं।।
काम हो हर हाथ को , अवश्य होना चाहिए ।
मुफ्त का भोजन मिले , हरगिज न होना चाहिए।।
दुर्भावना से हो ग्रसित , नेताओं ने ऐसा किया।
काहिल बनाने का श्रमिक को,रास्ता अपना लिया।।
मुफ्त राशन की मुहैया ,लोगों को होने लग गया।
मुफ्त रकम खाता में उनका, जमा होने लग गया ।।
अपना काम करना बंद कर, ब्लाॅक दौड़ने लगे ।
पैसा निकाला मुफ्त का, तो रिश्वत भी बांटने लगा।।
उपर से नीचे सब का हिस्सा,आपस में तय हो गया।
सब काम करना छोड़कर,ब्लौक जाने लग गया ।।
मुफ्त की कमाई कर, मालामाल सब होते गये।
जिसने गलत को गलत समझा, फटेहाल रह गये।।
जो पढ़ने में तेज थे ,वे ईमानदार बने रह गये।
वे कहीं का रहे नहीं ,अपनी दुर्गति खुद कर लिये।।
मेधावी अपने देशका, बर्बाद होने लग गया।
ईमानदार के नसीब में, अपमान सहना रह गया ।।
होता रहा जो फेल सदा , नेता वही अब बन गये ।
मेधावियों पर तो वही अब,रंग जमाने लग गये।।
इसे समय का फेर बोलें,याअन्य कुछ भी बोलिये ।
मेधावी तो बन गये बेचारा, चाहे तंज कस लीजिए।।
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सुंदर रचना!
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