रे मूढ़ मानव यह बता , तेरा दर्प टूटा या नहीं?
तेरे दर्प की पराकाष्ठा, अब भी बची क्या है कहीं??
अपनी मूढ़ता का यह नमूना,विश्व को दिखला दिया।
रे चीनियों खुद भी मरा ,पर विश्व को मरवा दिया ।।
संसार के सब मानवों का , प्रवल शत्रु बन दिखाया।
भलाई करने से रहा , बुराई तो करके दिखाया ।।
बुद्ध का तुम शिष्य प्रवल हो , लोग को कहते रहे ।
पर काम हरदम नीचता का ,ही सदा करते रहे ।।
रे कीट-भक्षी यह बता , क्या कर दिया,तूॅ सोंचते हो?
अधमता की चरम सीमा , पार कर गये ,सोंचते हो ??
समस्त मानव जातियों का ,प्रवल शत्रु तुम निकल गये?
अधमता की चरम सीमा,लाॅघ कर सबसे निकल गये।।
स्तित्व मानव का मिटाने , में लगा दी शक्ति अपनी ।
‘विनाश मानव का करेगें ‘, में लगा दी बुद्धि अपनी ।।
रे मूढ़ !मानव को मिटा , सीमा बढ़ाने में लगे हो ?
संहार मानव को कराने , में लगे दिन रात तुम हो??
सोंच लो अब युद्ध का , विभीषिका पर गौर कर लो ।
दुनियाॅ मरेगी या बचेगी , ध्यान से विचार कर लो ।।
कमजोर कोई अब नहीं, रहा इस संसार में ।
भर दिया विज्ञान ने ,विनाश की शक्ति सबों में।।
अभी मंत्र बिच्छू का न आता ,नाग से आ भिड़ गया।
खुद तो मरा रे मूढ़ तुम, औरों को भी मरवा दिया ।।
बढ़िया!
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