नित्य फूल खिलते उपवन में, जानें कौन खिलाता है?
वन-माली तो पेड़ लगाता, वही देख-रेख करता है।।
किस पौधे को कहाॅ लगायें, किसका कोरन देना है।
किसका पटवन आजहै करना,किसको और सुखानाहै।
कहते’रंगमंच है दुनियाॅ ,नित कुछ मंचन होता है ।
नित्य बदलते रहते नाटक,खेल बदलता रहता है।।
दृश्य बदलते रहते हरदम,मौसम भी बदलता रहता है।
मौसम के अनरूप धरा का,मंच बदलता रहता है ।।
सक्रियता वनमाली का तो,सदा बना ही रहता है ।
नये-नये पौधे उपवन में, सदा लगाता रहता है ।।
कथाकार का काम कठिन है, नित्य कहानी रचता है।
कलाकार, अनुकूल कथा का,चयन स्वयं ही करता है।।
निर्देशक का नजर सबों पर,किससे क्या कहलाना है।
बैठ कहीं उपर से अपना , सारा रोल निभाना है ।।
ऐ बनमाली निर्देशक जी, असमंजस में पड़ जाता हूॅ।
कौन नाम सै तुझे पुकारूॅ, उलझन में पड़ जाता हूॅ ।।
तेरी बगिया बहूत बड़ी है, कैसे सम्हाल तुम लेते हो?
लोग तो कहते यही गर्व से, पत्ता तकतुम खड़काते हो।
सब तेरी ईच्छा से होती, सबकुछ ही तुम करवाते हो।
खड़क न पाता कोई पत्ता,जबतक नतुम खड़कातेहो।।
सुनते,बहुत बड़ी है दुनियाॅ ,फिरभी तुम इसे चलातै हो।
सिर्फ चलाते नहीं सदा ,गुल नित नया खिलाते हो ।।
शक्तिमान अदृश्य संचालक,तुम क्या-क्या करवाते हो?
सर्वब्यापी तुम हो कहते सब, इसीलिए कर पाते हो ।।