ऐ सावन-भादो की काली घटाओं,तूॅ आकाशमें धुम कैसा मचाये।
काली जुल्फें,लहराती तेरी गेसुऐं, फिजाओं में मस्ती ही मस्ती लुटाये।।
रात काली, नशीली यूॅं होती बहुत,देती बूॅदे टपक कर नशा को बढ़ाये।
होते खोये हुए होश बेहोश सा,नींद आगोश में भर उनको सुलाये।।
बादलों की गरज, बिजलियों की चमक, चाहे जितनी भी अपनी करतब दिखाए।
फर्क उनको कुछ अब तो पड़ता नहीं, चाहे जितनी ही हाये तोबा मचाये ।।
आलिंगन में शक्ति है इतनी भरी,असर दूसरा इसपे पर ही न पाये।
रात रंगीन हो चाहे संगीन हो , छोड़ कर मेरा महबूब जा भी न पाये ।।
बात हल्की न लेना ,समय भी है थोड़ा,जो है हाथ से वह निकल ही न जाये ।
ओ निकला समय ,लौटकर फिर न आता , चाहे लाख सर को ,पीटा क्यों न जाये ।।