कहते ‘ले डूबता है एक पापी’, नाव को मझधार में।
चाईना का नाम भी कुछ, इस तरह संसार में ।।
जा रहा यह भी डुबोये , अनेकों देश को संसार के।
देश कहना कम पड़ेगा , संसार के महादेश के ।।
हुआ नहीं निकृष्ट ऐसा ,आज तक संसार में ।
सारी हदें जो पार कर दे ,लिखा ही नहीं इतिहास में।।
भक्ष कर कीड़े-मकोड़े , भ्रष्ट बुद्धि कर लिया खुद।
नीचता की हदें सारी , पार कर पहुॅचा यहाॅ खुद।।
अपने देश का भी नागरिक को, मार देना चाहता ।
अपने लोगको हत्या कराकर, संख्या घटाना चाहता।।
शासक नहीं ,शोषक है ये, मानवता का प्रवल शत्रु।
हदें सारी नीचता की , कर चुके हैं पार शत्रु।।
इस नीच ,पामर ,धूर्त से, सावधान खुद ही रहें।
करोनाजनक करोना सा शत्रु ,को कुचल ही दम धरें।।
यह शत्रु है घातक बहुत, विश्वास के काबिल नहीं।
घात कर दे कब किसीपर , कह कोई सकता नहीं।।
मित्र बनकर घात करना ,यह पुराना काम इनका ।
कर दोस्ती जो चोट खाई ,गयी नहीं है दर्द तब का।।
हिसाब चुकता है कराना, सन् बासट से बाकी आ रहा।
व्याज के है साथ लेना , जो दर्द तब से दे रहा।।
ताजा पड़ा है स्मरण में, भूल कैसे जाऊॅ मैं ।
हडपी गयी जमीं हमारा ,वापस उसे करवाऊॅ मैं।।