ज्ञानी-जन भयभीत न होते.

रहता पता कहाॅ किसी को,क्या अगला पल होने वाला।

सब के सब अनभिज्ञ यहां, कोई कहाॅ बताने वाला ??

कौन आयेगा ,कब आयेगा, नहीं जानता कोई ।

नहीं यहाॅ अवगत है रहता ,इन बातों से कोई ।।

अगर ज्ञात होगा किन्हीं को ,होयें वैसा कोई ।

उन्हें खोजें,शायद मिल पायें, ऐसे दुर्लभ हों कोई।।

पर है इतना तो ज्ञात सबों को, जायेगा सब कोई।

चाहे करले लाख यतन, पर रुका कहाॅ है कोई??

कितने आये वैद्य विशारद,गुण थोड़ा दिखलाये ।

नहीं आजतक कोई आया,आकर जो कभी न जाये।।

नहीं कोई है जगमें ऐसा , गूढ़ समझ जो पाये ।

देख ,किसी के जीवन का,त्रिकाल उसे समझाये ।।

मिलते तो वैसे ज्ञानी पर ,कभी कभी दिख पाते ।

सौभाग्यवस संयोग से , अवतारित धरा पर होते ।।

जाना तो जाना है सबको ,कब जाना भी तय है।

रोक नहीं सकता कोई भी,फिर क्यों जाने का भय है।।

ज्ञानीजन जो बात समझते, मृत्यु से भयभीत न होते।

आभाष उन्हें है हो जाता, खुद ही तैयारी कर लेते ।।

भय उनको नहीं सता पाते,कोई पथसे नहीं डिगा पाते।

कभी नहीं डरतेहैं किसीसे,हॅस मौतको गले लगा लेते।।

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