कंचन सी काया गौर वर्ण, आभा उसपर छाया होगा।
कोईआसमान से देखा होगा,क्या मनमें आया होगा??
जन्नतकी हूरों से भी ज्यादा,तुझे आभासित पायाहोगा।
उथल पुथल दिलमें उसके,कितना हरहोर मचाया होगा
सागर की उत्ताल लहर सा,दिल में ज्वार उठा होगा।
रोके भी ,रुक सकान होगा,फिर कैसे उसे दबाया होगा।
जब कोई मसीहा जन्नत वाले,झाॅक धरापर देखा होगा।
जब तुमपर नजर पड़ीहोगी,मलहाथ बेचारा रहता होगा
धरतीवालों का नाज तुम्हींपर,महसूस गर्व करता होगा।
धरा नहीं है कम जन्नत से,मनमें सोंच उपजता होगा।।
तूॅ लाजवाब,जवाब नतेरा,तुम सा कोई और नहीं होगा।
हो बेमिसाल तूॅ,मिसालन तेरा,जगमें को़ई औरनहीं होगा।
तुम मात्र अकेला, जोड़ नकोई इस जग में तेरा होगा।
तुम्हीं अनोखा जग में सबसे,तुलना तेरी किससे होगा।।